मैं अदनानी कबीलों के देश - छोड़ने के बारे में बता चूका हूँ और मैं एभी बता चुका हूँ की अरब देश इन कबीलों में बंट गया था । इसके बाद इनकी सरदारियों और सत्ता का स्वरूप कुछ इस तरह बन गया था कि जो क़बीले हियरा के आस - पास आबाद थे , उन्हें हियरा राज्य के आधीन माना गया और जो क़बीले बादियतुश - शाम में ( शाम के आस - पास ) आबाद हो गए थे , उन्हें ग़स्सानी शासकों के आधीन मान लिया गया , पर पराधीनता नाम मात्र थी , व्यवहार में न थी । इन दो जगहों को छोड़कर अरब के भीतरी भाग में क़बीले हर पहलू से स्वतंत्र थे । _ इन कबीलों में सरदारी व्यवस्था चल रही थी ।ऐ क़बीले खुद अपना सरदार नियुक्त करते थे और इन सरदारों के लिए उनका क़बीला एक छोटा - सा राज्य हुआ करता था । राजनीतिक अस्तित्व और सुरक्षा का आधार , क़बीलेवार इकाई पर आधारित पक्षपात और अपने भू - भाग की रक्षा - सुरक्षा के संयुक्त हित पर स्थापित था । _ क़बीलेवार सरदारों का स्थान अपनी क़ौम में बादशाहों जैसा था । क़बीला लड़ाई और संधि में बहरहाल अपने सरदार के फैसले के आधीन होता था और किसी हाल में उससे अलग - थलग नहीं रह सकता था ।
सरदार अपने क़बीले का तानाशाह हआ करता था , यहां तक कि कछ सरदारों का हाल यह था कि अगर वे बिगड़ जाते , तो हज़ारों तलवारें यह पूछे बिना नंगी चमकने लगतीं कि सरदार के गुस्से की वजह क्या है ? फिर भी चूंकि एक ही कुंबे के चचेरे भाइयों में सरदारी के लिए संघर्ष भी हआ करता था , इसलिए उसका तकाज़ा था कि सरदार अपनी क़बीलेवार जनता के प्रति उदारता दिखाए , खूब माल खर्च करे , सत्कार करे , धैर्य व सहनशीलता से काम ले , वीरता का व्यावहारिक रूप प्रदर्शित करे और सम्मान की रक्षा करे , ताकि लोगों की नज़र में आम तौर से और कवियों की नज़र में खास तौर से गुणों और विशेषताओं का योग बन जाए . ( क्योंकि उस युग में कवि क़बीले का मुख हुआ करते थे ) और इस तरह सरदार अपने लोगों में सर्वश्रेष्ठ बन जाए ।
सरदारों के कुछ विशेष और प्रमुख अधिकार भी हुआ करते थे , जिनका एक कवि ने इस तरह उल्लेख किया है लकल मिरबाशु फ़ीना वस्सफ़ााया व हुक्मु - क वन्नशीततु वल फुजूलू हमारे बीच तुम्हारे लिए ग़नीमत के ( लड़ाइयों में लूटे गए माल का चौथाई है और चुनींदा माल है और वह माल है जिसका तुम फैसला कर दो और जो राह चलते हाथ आ जाए और जो बंटने से बच रहे । ' मिरबाअ : ग़नीमत के माल का चौथाई हिस्सा , सफ़ाया : वह माल , जिसे बंटने से पहले ही सरदार अपने लिए चुन ले , नशीता : वह माल जो असल क़ौम तक पहुंचने से पहले रास्ते ही में सरदार के हाथ लग जाए , फुजूल : वह माल , जो बंटने के बाद बचा रहे और लड़ने वालों की संख्या में बराबर न बंटे , जैसे बंटने से बचे हुए ऊंट - घोड़े आदि ये तमाम प्रकार के माल क़बीला के सरदार का हक़ हुआ करते थे ।
सरदार अपने क़बीले का तानाशाह हआ करता था , यहां तक कि कछ सरदारों का हाल यह था कि अगर वे बिगड़ जाते , तो हज़ारों तलवारें यह पूछे बिना नंगी चमकने लगतीं कि सरदार के गुस्से की वजह क्या है ? फिर भी चूंकि एक ही कुंबे के चचेरे भाइयों में सरदारी के लिए संघर्ष भी हआ करता था , इसलिए उसका तकाज़ा था कि सरदार अपनी क़बीलेवार जनता के प्रति उदारता दिखाए , खूब माल खर्च करे , सत्कार करे , धैर्य व सहनशीलता से काम ले , वीरता का व्यावहारिक रूप प्रदर्शित करे और सम्मान की रक्षा करे , ताकि लोगों की नज़र में आम तौर से और कवियों की नज़र में खास तौर से गुणों और विशेषताओं का योग बन जाए . ( क्योंकि उस युग में कवि क़बीले का मुख हुआ करते थे ) और इस तरह सरदार अपने लोगों में सर्वश्रेष्ठ बन जाए ।
सरदारों के कुछ विशेष और प्रमुख अधिकार भी हुआ करते थे , जिनका एक कवि ने इस तरह उल्लेख किया है लकल मिरबाशु फ़ीना वस्सफ़ााया व हुक्मु - क वन्नशीततु वल फुजूलू हमारे बीच तुम्हारे लिए ग़नीमत के ( लड़ाइयों में लूटे गए माल का चौथाई है और चुनींदा माल है और वह माल है जिसका तुम फैसला कर दो और जो राह चलते हाथ आ जाए और जो बंटने से बच रहे । ' मिरबाअ : ग़नीमत के माल का चौथाई हिस्सा , सफ़ाया : वह माल , जिसे बंटने से पहले ही सरदार अपने लिए चुन ले , नशीता : वह माल जो असल क़ौम तक पहुंचने से पहले रास्ते ही में सरदार के हाथ लग जाए , फुजूल : वह माल , जो बंटने के बाद बचा रहे और लड़ने वालों की संख्या में बराबर न बंटे , जैसे बंटने से बचे हुए ऊंट - घोड़े आदि ये तमाम प्रकार के माल क़बीला के सरदार का हक़ हुआ करते थे ।
No comments:
Post a Comment