मोहम्मद का परिवार अपने पूर्वज हाशिम बिन अब्दे मुनाफ़ से जुड़ने से हाशमी परिवार के नाम से प्रसिद्ध है । इसलिए मुनासिब मालूम होता है कि हाशिम और उसके बाद के कुछ लोगों के संक्षिप्त हालात पेश कर दिए जाएं ।
1 . हाशिम
हम बता चुके हैं कि जब बनू अब्दे मुनाफ़ और बनू अब्दुद्दार के बीच पदों के बंटवारे पर समझौता हो गया तो अब्दे मुनाफ़ की सन्तान में हाशिम ही को सिक़ाया और रिफ़ादा यानी हाजियों को पानी पिलाने और उनका सत्कार करने का पद प्राप्त हुआ । हाशिम बड़े प्रतिष्ठित और मालदार व्यक्ति थे । यह पहले व्यक्ति हैं , जिन्होंने मक्के में हाजियों को शोरबा रोटी सान कर खिलाने का प्रबन्ध किया । उनका असल नाम अम्र था , लेकिन रोटी तोड़ कर शोरबे में सामने की वजह से उनको हाशिम कहा जाने लगा , क्योंकि हाशिम का अर्थ है तोड़ने वाला , फिर यही हाशिम वह पहले आदमी हैं , जिन्होंने कुरैश के लिए गर्मी और जाड़े की दो वार्षिक व्यापारिक यात्राओं की बुनियाद रखी । उनके बारे में कवि कहता है
' यह अम्र ही हैं , जिन्होंने अकाल की मारी हुई अपनी कमज़ोर क़ौम को मक्के में रोटियां तोड़ कर शोरबे में भिगो - भिगोकर खिलाईं और जाड़े और गर्मी की दोनों यात्राओं की बुनियाद रखी ।
' उनकी एक महत्वपूर्ण घटना यह है कि वे व्यापार के लिए शाम देश गये । रास्ते में मदीना पहुंचे तो वहां क़बीला बनी नज्जार की एक महिला सलमा बिन्त अम्र से विवाह कर लिया और कुछ दिनों वहीं ठहरे रहे । फिर बीवी को हमल की हालत में मां के यहां ही छोड़कर शाम देश रवाना हो गए और वहां जाकर फलस्तीन के शहर ग़ज़्ज़ा में देहान्त हो गया । इधर सलमा के पेट से बच्चा पैदा हआ ।
यह सन 497 ई० की बात है . चंकि बच्चे के सर के बालों में सफ़ेदी थी , इसलिए सलमा ने उसका नाम शैबा रखा और यसरिब(मदीना)में अपनी मां के घर ही में उसकी परवरिश की । आगे चलकर यही बच्चा अब्दुल मुत्तलिब के नाम से प्रसिद्ध हआ । एक समय तक हाशिम परिवार के किसी व्यक्ति को उसके अस्तित्व का ज्ञान न हो सका ।
हाशिम के कुल चार बेटे और पांच बेटियां थीं । असद , अबू सैफ़ी , फुजला , अब्दुल मुत्तलिब - शिफ़ा , खालिदा , ज़ईफ़ा , रुकैया और जन्नः ।
2 . अब्दुल मुत्तलिब
पिछले पृष्ठों से मालूम हो चुका है कि सिकाया और रिफ़ादा का पद हाशिम के बाद उनके भाई मुत्तलिब को मिला । इनमें भी बड़ी खबियां थी . और इन्हें भी अपनी कौम में बडी प्रतिष्ठा प्राप्त थी । इनकी बात टाली नहीं जाती थी । इनकी दानशीलता के कारण कुरैश ने इनको दानी की उपाधि दे रखी थी । जब शैबा यानी अब्दुल मुत्तलिब , सात या आठ वर्ष के हो गए तो मत्तलिब को इनके बारे में मालम हआ और वह इन्हें लेने के लिए रवाना हुए । जब यसरिब के करीब पहुंचे और शैबा पर नज़र पड़ी तो आंखों में आंसू आ गए । उन्हें सीने से लगा लिया और फिर अपनी सवारी पर पीछे बिठाकर मक्का के लिए रवाना हो गये । मगर शैबा ने मां की इजाजत के बिना साथ जाने से इंकार कर दिया । इसलिए मुत्तलिब उनकी मां से इजाज़त चाहने लगे , पर मां ने इजाज़त न दी , आखिर मुत्तलिब ने कहा कि यह अपने बाप की हुकूमत और अल्लाह के हरम की ओर जा रहे हैं , इस पर मां ने इजाज़त दे दी और मुत्तलिब इन्हें ऊंट पर बिठा कर मक्का ले आए । मक्का वालों ने देखा तो कहा , यह अब्दुल मुत्तलिब है , यानी मुत्तलिब का दास है । मुत्तलिब ने कहा , नहीं , नहीं , यह मेरा भतीजा अर्थात मेरे भाई हाशिम का लड़का है । फिर शैबा मुत्तलिब के पास पले - बढ़े और जवान हुए । इसके बाद रोमान ( यमन ) नामी जगह पर मुत्तलिब की मृत्यु हो गई और उनके छोड़े हुए पद अब्दुल मुत्तलिब को मिल गए । अब्दुल मुत्तलिब ने अपनी क़ौम में इतना ऊंचा स्थान प्राप्त किया कि उनके बाप - दादों में भी कोई इस स्थान को न पहुंच सका था । क़ौम ने उन्हें दिल से चाहा और उनका बड़ा मान - सम्मान किया ।
जब मुत्तलिब की मृत्यु हो गई तो नौफुल ने अब्दुल मुत्तलिब के आंगन पर बलात् कब्जा कर लिया । अब्दुल मुत्तलिब ने कुरैश के कुछ लोगों से अपने चचा के खिलाफ़ मदद चाही , लेकिन उन्होंने यह कहकर विवशता व्यक्त कर दी कि हम तम्हारे और तुम्हारे चचा के बीच हस्तक्षेप नहीं कर सकते । आखिर अब्दुल मत्तलिब ने बनी नज्जार में अपने मामा को कुछ कविता लिख भेजी जिसमें उनसे सहायता मांगी थी । जवाब में उनका मामा अबू साद बिन अदी अस्सी सवार लेकर रवाना आ और मक्का के करीब अबतह में उतरा । अब्दुल मुत्तलिब ने वहीं मुलाकात की और कहा , मामूं जान ! घर तशरीफ़ ले चलें ।
अबू साद ने कहा , नहीं , ख़ुदा की क़सम ! यहां तक कि नैफुल से मिल लूं । इसके बाद अबू साद आगे बढ़ा और नौफुल के सर पर आ खड़ा हुआ । नौफ़ल हतीम में कुरैश के सरदारों के साथ बैठा था । अब साद ने तलवार भांजते हुए कहा ' इस घर के रब की क़सम ! अगर तुमने मेरे भांजे की ज़मीन वापस न की , तो यह तलवार तुम्हारे अन्दर घुसा दूंगा । ' नौफुल ने कहा , ' अच्छा लो , मैंने वापस कर दी । ' इस पर अबू साद ने कुरैश के सरदारों को गवाह बनाया , फिर अब्दुल मुत्तलिब के घर गया और तीन दिन ठहर कर उमरा करने के बाद मदीना वापस चला गया ।
इस घटना के बाद नौफुल ने बनी हाशिम के खिलाफ बनी अब्दे शम्स से आपस में एक दूसरे की सहायता का समझौता किया । इधर बनू खुजाआ ने देखा कि बनू नज्जार ने अब्दुल मुत्तलिब की इस तरह मदद की है , तो कहने लगे कि अब्दुल मुत्तलिब जिस तरह तुम्हारी सन्तान है , हमारी भी सन्तान है , इसलिए हम पर उसकी मदद का हक़ ज़्यादा है ।
इसकी वजह यह थी कि अब्दे मुनाफ़ की मां क़बीला खुजाआ ही से ताल्लुक रखती थीं , इसलिए बनू खुज़ाआ ने दारुन्नदवा में जाकर बनू अब्द शम्स और बनी नौफुल के खिलाफ़ बनू हाशिम से सहयोग का समझौता किया । यही समझौता था जो आगे चलकर इस्लामी युग में मक्का विजय का कारण बना । विस्तृत विवरण आगे आ रहा है । बैतुल्लाह के ताल्लुक़ से अब्दुल मुत्तलिब के साथ दो महत्वपूर्ण घटनाएं घटी
एक ज़मज़म के कुएं की खुदाई की घटना , और दूसरी हाथी की घटना ।
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