इनके मूल पुरखे सैयिदिना इबाहीम अलैहिस्सलाम मूलत : इराक के एक नगर उर के रहने वाले थे । यह नगर फ़रात नदी के पश्चिमी तट पर कूफ़ा के करीब स्थित था । इसकी खुदाई के दौरान जो शिलालेख मिले हैं , उनसे उस नगर के बारे में बहुत - सी बातें सामने आई हैं और हज़रत इबाहीम अलैहिस्सलाम के परिवार के कुछ विवरण और देशवासियों की धार्मिक और सामाजिक परिस्थितियों पर से भी परदा उठता है । यह मालूम है कि हज़रत इबाहीम अलैहिस्सलाम यहां से हिजरत करके हजान नगर तशरीफ ले गए थे और फिर वहां से फलस्तीन जाकर उसी देश को अपनी पैग़म्बराना गतिविधियों का केन्द्र बना लिया था और दावत व तब्लीग़ ( प्रचार - प्रसार ) के लिए यहीं से देश के भीतर और बाहर संघर्षरत रहा करते थे । एक बार आप मिस्र तशरीफ़ ले गए । फ़िरऔन ने आपकी बीवी हज़रत सारा के बारे में सुना , तो उनके बारे में उसकी नीयत बुरी हो गई और उन्हें अपने दरबार में बरे इरादे से बलाया . लेकिन अल्लाह ने हज़रत सारा की दआ के नतीजे में अनदेखे रूप से फ़िरऔन की ऐसी पकड़ की कि वह हाथ - पांव मारने और फेंकने लगा । फिर हज़रत सारा की दुआ से ठीक हो गया । तीन बार की ऐसी दशा से उसे समझ में आ गया कि हज़रत सारा अल्लाह की बहुत खास और करीबी बन्दी हैं और वह हज़रत सारा की इस विशेषता से इतना प्रभावित हुआ कि हज़रत हाजरा ' को उनकी सेवा में दे दिया । फिर हज़रत सारा ने हज़रत हाजरा को हज़रत इबाहीम अलैहिस्सलाम की पत्नी के रूप में पेश कर दिया ।
हज़रत इबाहीम अलैहिस्सलाम , हज़रत सारा और हज़रत हाजरा को साथ लेकर फ़लस्तीन वापस तशरीफ़ लाए , फिर अल्लाह ने हज़रत इबाहीम अलैहिस्सलाम को हाजरा अलैहस्सलाम के पेट से एक बेटा - इस्माईल – अता फ़रमाया , लेकिन इस पर हज़रत सारा को जो नि : सन्तान थीं , बड़ी शर्म आई और उन्होंने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को मजबूर किया कि हज़रत हाजरा को उनके नए बच्चे सहित देश निकाला दे दें । हालात ने ऐसा रुख अपनाया कि उन्हें हज़रत सारा की बात माननी पड़ी और हज़रत हाजरा और बच्चे हज़रत इस्माईल को साथ लेकर हिजाज़ तशरीफ़ ले गए और वहां एक चटयल घाटी में बैतुल्लाह शरीफ़ के क़रीब ठहरा दिया ।
उस वक़्त बैतल्लाह शरीफ़ न था , सिर्फ टीले की तरह उभरी हुई ज़मीन थी । बाढ़ आती थी तो पानी दाहिने - बाएं से कतरा कर निकल जाता था । वहीं मस्जिदे हराम के ऊपरी भाग में ज़मज़म के पास एक बहुत बड़ा पेड़ था । आपने उसी पेड़ के पास हज़रत हाजरा और हज़रत इस्माईल अलै० को छोड़ा था । उस वक़्त न मक्का में पानी था , न आदम , न आदमज़ाद । इसलिए हज़रत इबाहीम ने एक तोशेदान में खजूर और एक मश्केज़े में पानी रख दिया ।
इसके बाद फ़लस्तीन वापस चले गए , लेकिन कुछ ही दिनों में खजूर और पानी खत्म हो गया और बड़ी कठिन घड़ी का सामना करना पड़ा , पर ऐसी कठिन घड़ी में अल्लाह की मेहरबानी से ज़मज़म का सोता फूट पड़ा और एक मुद्दत तक के लिए रोज़ी का सामान और जीवन की पंजी बन गया । ये बातें आम तौर से लोगों को मालूम हैं ।
कुछ दिनों के बाद यमन से एक क़बीला आया , जिसे इतिहास में जुरहुम द्वितीय कहा जाता है । यह क़बीला इस्माईल अलैहिस्सलाम की मां से इजाजत लेकर मक्का में ठहर गया । कहा जाता है कि यह क़बीला पहले मक्का के आस - पास की घाटियों में ठहरा हुआ था । सहीह बुख़ारी में इतना स्पष्टीकरण मौजूद है कि ( रहने के उद्देश्य से ) ये लोग मक्का में हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के आने के बाद और उनके जवान होने से पहले आये थे , लेकिन इस घाटी से उनका गुज़र इससे पहले भी हुआ करता था ।
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपने छोड़े हुओं की निगरानी के लिए कभी - कभी मक्का तशरीफ़ लाया करते थे , लेकिन यह मालमू न हो सका कि इस तरह उनका कितनी बार आना हुआ , हां , ऐतिहासिक स्रोतों से उनका चार बार आना साबित है , जो इस तरह है
1 . कुरआन मजीद में बयान किया गया है कि अल्लाह ने हज़रत इबाहीम अलैहिस्सलाम को सपने में दिखलाया कि वह अपने सुपुत्र ( हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम ) को ज़िम्ह कर रहे हैं । यह सपना एक प्रकार से अल्लाह का हुक्म था । बाप - बेटे दोनों जब अल्लाह के इस हुक्म को पूरा करने के लिए तैयार हो गये और बाप ने बेटे को माथे के बल लिटा दिया , तो अल्लाह ने पुकारा , ऐ इब्राहीम ! तुमने सपने को सच कर दिखाया । हम अच्छे लोगों को इसी तरह बदला देते हैं । निश्चय ही यह खुली परीक्षा थी और अल्लाह ने उन्हें फ़िदए ( प्रतिदान ) में एक बड़ा , जिब्ह के लायक जीव अता कर दिया । बाइबिल की किताब पैदाइश में उल्लिखित है कि हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम , हज़रत इसहाक़ अलैहिस्सलाम से तेरह साल बड़े थे और कुरआन से मालूम होता है कि यह घटना हज़रत इसहाक़ अलैहिस्सलाम के जन्म से पहले घटी थी , क्योंकि पूरी घटना का उल्लेख कर चुकने के बाद हज़रत इसहाक़ अलैहिस्सलाम के जन्म की शुभ - सूचना दी गई है । इस घटना से सिद्ध होता है कि हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के जवान होने से पहले कम से कम एक बार हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मक्के का सफ़र ज़रूर किया था । बाक़ी तीन सफ़रों का विवरण सहीह बुखारी की एक लंबी रिवायत में है , जो इब्ने अब्बास रजि० से मरफूअन रिवायत की गई है । उसका सार यह है
2 . हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम जब जवान हो गये , जुरहुम से अरबी सीख ली और उनकी निगाहों में जंचने लगे , तो उन लोगों ने अपने परिवार की एक महिला से आपका विवाह कर दिया । उसी बीच हज़रत हाजरा का देहान्त हो गया । उधर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ख्याल हुआ कि अपने छोड़े हुओं को देखना चाहिए । चुनांचे वह मक्का तशरीफ़ ले गये । लेकिन हज़रत इस्माईल से मुलाक़त न हुई । बहू से हालात मालूम किए । उसने तंगदस्ती की शिकायत की । आपने वसीयत की कि इस्माईल अलैहिस्सलाम आएं तो कहना , अपने दरवाजे की चौखट बदल दें । इस वसीयत का मतलब हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम समझ गए । बीवी को तलाक दे दी और एक दूसरी औरत से शादी कर ली , जो अधिकतर इतिहासकारों के कथनानुसार जुरहुम के सरदार बुखारी का भी झुकाव है । चुनांचे अपनी सहीह में उन्होंने एक बाब ( अध्याय ) बांधा है , जिसका शीर्षक है ' इस्माईल अलैहिस्सलाम की ओर यमन की निस्बत ' और इस पर कुछ हदीसों से तर्क जुटाया है । हाफ़िज़ इब्ने हजर ने उसकी व्याख्या में इस बात को प्रमुखता दी है कि कह्तान , नाबित बिन इस्माईल अलैहिस्सलाम की नस्ल से थे ।
कीदार बिन इस्माईल अलैहिस्सलाम की नस्ल मक्का ही में फलती - फूलत रही , यहां तक कि अदनान और फिर उनके बेटे मअद का ज़माना आ गया अदनानी अरब का वंश - क्रम सही तौर पर यहीं तक सुरक्षित है ।
अदनान नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वंश - क्रम की 21वीं पीढ़ी । पड़ते हैं कुछ रिवायतों में बयान किया गया है कि आप जब अपने वंश - क्रम उल्लेख करते तो अदनान पर पहुंच कर रुक जाते और आगे न बढ़ते , फ़रमाते । वंश - क्रम के विशेषज्ञ ग़लत कहते हैं ।
मगर विद्वानों का एक गिरोह कहता कि अदनान से आगे भी वंश - क्रम बताया जा सकता है । उन्होंने इस रिवायत = कमजोर कहा है । लेकिन उनके नज़दीक नसब के इस हिस्से में बड़ा मतभेद मिलाप संभव नहीं । अल्लामा मंसूरपुरी ने इब्ने साद की रिवायत को प्रमुखता है जिसे तबरी और मसऊदी आदि ने भी दूसरे कथनों और रिवायतों के सा ज़िक्र किया है । इस रिवायत के अनुसार अदनान और हज़रत इबाही अलैहिस्सलाम के बीच चालीस पीढ़ियां हैं ।
बहरहाल मअद के बेटे नज़ार से — जिनके बारे में कहा जाता है कि इन अलावा मअद की कोई सन्तान न थी - कई परिवार अस्तित्व में आए । वास्तव नज़ार के चार बेटे थे और हर बेटा एक बड़े क़बीले की बुनियाद बना ।
चारों में नाम ये हैं
चुनांचे रबीआ से असद बिन रबीआ , अन्जा , अब्दुल कैस , वाइल , बिक्र , तग़लब और बनू हनीफ़ा वगैरह अस्तित्व में आए । मुज़र की सन्तान दो बड़े क़बीलों में विभाजित हुई
इलयास बिन मुज़र से तमीम बिन मुर्रा , बुज़ैल बिन मुदरका , बनू असद बिन खुञ्जमा और किनाना बिन खुर्जामा के क़बीले अस्तित्व में आए । फिर किनाना से कुरैश का क़बीला अस्तित्व में आया । यह क़बीला फ़िह बिन मालिक बिन नज बिन किनाना की सन्तान है ।
फिर कुरैश भी विभिन्न शाखाओं में बंटे । मशहूर कुरैशी शाखाओं के नाम ये हैं -
जम्ह , सम , अदी , मजूम , तैम ,
जोहरा और कुसई बिन किलाब के परिवार , यानी अब्दुद्दार , असद बिन अब्दुल उज़्ज़ा और अब्दे मुनाफ़ , ये तीनों कुसई के बेटे थे ।
इनमें से अब्द मुनाफ़ के चार बेटे हुए , जिनसे चार उप क़बीले अस्तित्व में आए , यानी अब्द शम्स , नौफ़ल , मुत्तलिब और हाशिम । इन्हीं हाशिम की नस्ल से अल्लाह ने हमारे हुजूर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को चुना ।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है कि अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सन्तान में से इस्माईल अलैहिस्सलाम को चुना , फिर इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलाद में से किनाना को चुना और किनाना की नस्ल से कुरैश को चुना , फिर कुरैश में से बनू हाशिम को चुना और बनू हाशिम में से मुझे चुना ।
इब्ने अब्बास रजि० का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया , अल्लाह ने तमाम जीवों को पैदा किया , तो मुझे सबसे अच्छे गिरोह में बनाया , फिर इनके भी दो गिरोहों में से ज़्यादा अच्छे गिरोह के अन्दर रखा , फिर कबीलों को चुना , तो मुझे सबसे अच्छे कबीले के अन्दर बनाया , फिर घरानों को चुना तो मुझे सबसे अच्छे घरानों में बनाया , इसलिए मैं अपनी जात ( निज ) के एतबार से भी सबसे अच्छा हूं और अपने घराने के एतबार से भी सबसे बेहतर हूं ।
बहरहाल अदनान की नस्ल जब ज्यादा बढ़ गई तो वह रोजी - रोटी की खोज में अरब के विभिन्न भू - भाग में फैल गई , चुनांचे क़बीला अब्दुल कैस ने , बिक्र बिन वाइल की कई शाखाओं ने और बनू तमीम के परिवारों ने बहरैन का रुख किया और उसी क्षेत्र में जा बसे ।
बनू हनीफ़ा बिन साब बिन अली बिन बिक्र ने यमामा का रुख किया और उसके केन्द्र हिज्र में आबाद हो गये । बिक्र बिन वाइल की बाक़ी शाखाओं ने , यमामा से लेकर बहरैन , काजिमा तट , खाड़ी , सवादे इराक , उबुल्ला और हय्यत तक के इलाकों में रहना - सहना शुरू कर दिया ।
बनू तग़लब फरातिया द्वीप में जा बसे , अलबत्ता उनकी कुछ शाखाओं ने बनूं बिक्र के साथ रहना - सहना पसन्द किया । बनू तमीम बादिया बसरा में जाकर आबाद हो गए ।
बनू सुलैम ने मदीना के करीब डेरे डाले । उनकी आबादी वादिल कुरा से शुरू होकर खैबर और मदीना के पूरब से गुज़रती हुई हर्रा बनू सुलैम से मिले दो पहाड़ों तक फैली हुई थी ।
बनू सक़ीफ़ तायफ़ में रहने - सहने लगे और बनू हवाज़िन ने मक्का के पूरब में औतास घाटी के आस - पास डेरे डाले । उनकी आबादी मक्का - बसरा राजमार्ग पर स्थित थी ।
बनू असद तैमा के पूरब और कूफ़ा के पश्चिम में आबाद हो गए थे । उनके और तैमा के बीच बनू तै का एक परिवार बहतर आबाद था । बनू असद की आबादी और कूफ़े के बीच पांच दिन की दूरी थी ।
बनू ज़िबयान तैमा के क़रीब हौरान के आस - पास आबाद हो गये थे । - तिहामा में बन किनाना के परिवार रह गये थे । इनमें से कुरैशी परिवारों का रहना - सहना मक्का और उसके आस - पास था । ये लोग बिखरे हुए थे , ये आपस में बंधे हुए न थे , यहां तक कि कुसई बिन किलाब उभरा और कुरैशियों को एक बनाकर उन्हें मान - सम्मान और उच्च व श्रेष्ठ स्थान दिलाया ।
हज़रत इबाहीम अलैहिस्सलाम , हज़रत सारा और हज़रत हाजरा को साथ लेकर फ़लस्तीन वापस तशरीफ़ लाए , फिर अल्लाह ने हज़रत इबाहीम अलैहिस्सलाम को हाजरा अलैहस्सलाम के पेट से एक बेटा - इस्माईल – अता फ़रमाया , लेकिन इस पर हज़रत सारा को जो नि : सन्तान थीं , बड़ी शर्म आई और उन्होंने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को मजबूर किया कि हज़रत हाजरा को उनके नए बच्चे सहित देश निकाला दे दें । हालात ने ऐसा रुख अपनाया कि उन्हें हज़रत सारा की बात माननी पड़ी और हज़रत हाजरा और बच्चे हज़रत इस्माईल को साथ लेकर हिजाज़ तशरीफ़ ले गए और वहां एक चटयल घाटी में बैतुल्लाह शरीफ़ के क़रीब ठहरा दिया ।
उस वक़्त बैतल्लाह शरीफ़ न था , सिर्फ टीले की तरह उभरी हुई ज़मीन थी । बाढ़ आती थी तो पानी दाहिने - बाएं से कतरा कर निकल जाता था । वहीं मस्जिदे हराम के ऊपरी भाग में ज़मज़म के पास एक बहुत बड़ा पेड़ था । आपने उसी पेड़ के पास हज़रत हाजरा और हज़रत इस्माईल अलै० को छोड़ा था । उस वक़्त न मक्का में पानी था , न आदम , न आदमज़ाद । इसलिए हज़रत इबाहीम ने एक तोशेदान में खजूर और एक मश्केज़े में पानी रख दिया ।
इसके बाद फ़लस्तीन वापस चले गए , लेकिन कुछ ही दिनों में खजूर और पानी खत्म हो गया और बड़ी कठिन घड़ी का सामना करना पड़ा , पर ऐसी कठिन घड़ी में अल्लाह की मेहरबानी से ज़मज़म का सोता फूट पड़ा और एक मुद्दत तक के लिए रोज़ी का सामान और जीवन की पंजी बन गया । ये बातें आम तौर से लोगों को मालूम हैं ।
कुछ दिनों के बाद यमन से एक क़बीला आया , जिसे इतिहास में जुरहुम द्वितीय कहा जाता है । यह क़बीला इस्माईल अलैहिस्सलाम की मां से इजाजत लेकर मक्का में ठहर गया । कहा जाता है कि यह क़बीला पहले मक्का के आस - पास की घाटियों में ठहरा हुआ था । सहीह बुख़ारी में इतना स्पष्टीकरण मौजूद है कि ( रहने के उद्देश्य से ) ये लोग मक्का में हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के आने के बाद और उनके जवान होने से पहले आये थे , लेकिन इस घाटी से उनका गुज़र इससे पहले भी हुआ करता था ।
हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम अपने छोड़े हुओं की निगरानी के लिए कभी - कभी मक्का तशरीफ़ लाया करते थे , लेकिन यह मालमू न हो सका कि इस तरह उनका कितनी बार आना हुआ , हां , ऐतिहासिक स्रोतों से उनका चार बार आना साबित है , जो इस तरह है
1 . कुरआन मजीद में बयान किया गया है कि अल्लाह ने हज़रत इबाहीम अलैहिस्सलाम को सपने में दिखलाया कि वह अपने सुपुत्र ( हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम ) को ज़िम्ह कर रहे हैं । यह सपना एक प्रकार से अल्लाह का हुक्म था । बाप - बेटे दोनों जब अल्लाह के इस हुक्म को पूरा करने के लिए तैयार हो गये और बाप ने बेटे को माथे के बल लिटा दिया , तो अल्लाह ने पुकारा , ऐ इब्राहीम ! तुमने सपने को सच कर दिखाया । हम अच्छे लोगों को इसी तरह बदला देते हैं । निश्चय ही यह खुली परीक्षा थी और अल्लाह ने उन्हें फ़िदए ( प्रतिदान ) में एक बड़ा , जिब्ह के लायक जीव अता कर दिया । बाइबिल की किताब पैदाइश में उल्लिखित है कि हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम , हज़रत इसहाक़ अलैहिस्सलाम से तेरह साल बड़े थे और कुरआन से मालूम होता है कि यह घटना हज़रत इसहाक़ अलैहिस्सलाम के जन्म से पहले घटी थी , क्योंकि पूरी घटना का उल्लेख कर चुकने के बाद हज़रत इसहाक़ अलैहिस्सलाम के जन्म की शुभ - सूचना दी गई है । इस घटना से सिद्ध होता है कि हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम के जवान होने से पहले कम से कम एक बार हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम ने मक्के का सफ़र ज़रूर किया था । बाक़ी तीन सफ़रों का विवरण सहीह बुखारी की एक लंबी रिवायत में है , जो इब्ने अब्बास रजि० से मरफूअन रिवायत की गई है । उसका सार यह है
2 . हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम जब जवान हो गये , जुरहुम से अरबी सीख ली और उनकी निगाहों में जंचने लगे , तो उन लोगों ने अपने परिवार की एक महिला से आपका विवाह कर दिया । उसी बीच हज़रत हाजरा का देहान्त हो गया । उधर हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम को ख्याल हुआ कि अपने छोड़े हुओं को देखना चाहिए । चुनांचे वह मक्का तशरीफ़ ले गये । लेकिन हज़रत इस्माईल से मुलाक़त न हुई । बहू से हालात मालूम किए । उसने तंगदस्ती की शिकायत की । आपने वसीयत की कि इस्माईल अलैहिस्सलाम आएं तो कहना , अपने दरवाजे की चौखट बदल दें । इस वसीयत का मतलब हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम समझ गए । बीवी को तलाक दे दी और एक दूसरी औरत से शादी कर ली , जो अधिकतर इतिहासकारों के कथनानुसार जुरहुम के सरदार बुखारी का भी झुकाव है । चुनांचे अपनी सहीह में उन्होंने एक बाब ( अध्याय ) बांधा है , जिसका शीर्षक है ' इस्माईल अलैहिस्सलाम की ओर यमन की निस्बत ' और इस पर कुछ हदीसों से तर्क जुटाया है । हाफ़िज़ इब्ने हजर ने उसकी व्याख्या में इस बात को प्रमुखता दी है कि कह्तान , नाबित बिन इस्माईल अलैहिस्सलाम की नस्ल से थे ।
कीदार बिन इस्माईल अलैहिस्सलाम की नस्ल मक्का ही में फलती - फूलत रही , यहां तक कि अदनान और फिर उनके बेटे मअद का ज़माना आ गया अदनानी अरब का वंश - क्रम सही तौर पर यहीं तक सुरक्षित है ।
अदनान नबी सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम के वंश - क्रम की 21वीं पीढ़ी । पड़ते हैं कुछ रिवायतों में बयान किया गया है कि आप जब अपने वंश - क्रम उल्लेख करते तो अदनान पर पहुंच कर रुक जाते और आगे न बढ़ते , फ़रमाते । वंश - क्रम के विशेषज्ञ ग़लत कहते हैं ।
मगर विद्वानों का एक गिरोह कहता कि अदनान से आगे भी वंश - क्रम बताया जा सकता है । उन्होंने इस रिवायत = कमजोर कहा है । लेकिन उनके नज़दीक नसब के इस हिस्से में बड़ा मतभेद मिलाप संभव नहीं । अल्लामा मंसूरपुरी ने इब्ने साद की रिवायत को प्रमुखता है जिसे तबरी और मसऊदी आदि ने भी दूसरे कथनों और रिवायतों के सा ज़िक्र किया है । इस रिवायत के अनुसार अदनान और हज़रत इबाही अलैहिस्सलाम के बीच चालीस पीढ़ियां हैं ।
बहरहाल मअद के बेटे नज़ार से — जिनके बारे में कहा जाता है कि इन अलावा मअद की कोई सन्तान न थी - कई परिवार अस्तित्व में आए । वास्तव नज़ार के चार बेटे थे और हर बेटा एक बड़े क़बीले की बुनियाद बना ।
चारों में नाम ये हैं
1 . इयाद , 2 . अनमार , 3 . रबीआ और 4 . मुज़र ।
इनमें से अन्तिम दो कबीलों की शाखाएं और उपशाखाएं बहुत ज्यादा हुईंचुनांचे रबीआ से असद बिन रबीआ , अन्जा , अब्दुल कैस , वाइल , बिक्र , तग़लब और बनू हनीफ़ा वगैरह अस्तित्व में आए । मुज़र की सन्तान दो बड़े क़बीलों में विभाजित हुई
1 . कैस ईलान बिन मुज़र ,2 . इलयास बिन मुज़र
कैस ईलान से बनू सुलैम , बनू हवाज़िन , बनू ग़तफ़ान , ग़तफ़ान से अबस , जुबियान , अशजअ और ग़नी बिन आसुर क़बीले अस्तित्व में आए ।इलयास बिन मुज़र से तमीम बिन मुर्रा , बुज़ैल बिन मुदरका , बनू असद बिन खुञ्जमा और किनाना बिन खुर्जामा के क़बीले अस्तित्व में आए । फिर किनाना से कुरैश का क़बीला अस्तित्व में आया । यह क़बीला फ़िह बिन मालिक बिन नज बिन किनाना की सन्तान है ।
फिर कुरैश भी विभिन्न शाखाओं में बंटे । मशहूर कुरैशी शाखाओं के नाम ये हैं -
जम्ह , सम , अदी , मजूम , तैम ,
जोहरा और कुसई बिन किलाब के परिवार , यानी अब्दुद्दार , असद बिन अब्दुल उज़्ज़ा और अब्दे मुनाफ़ , ये तीनों कुसई के बेटे थे ।
इनमें से अब्द मुनाफ़ के चार बेटे हुए , जिनसे चार उप क़बीले अस्तित्व में आए , यानी अब्द शम्स , नौफ़ल , मुत्तलिब और हाशिम । इन्हीं हाशिम की नस्ल से अल्लाह ने हमारे हुजूर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम को चुना ।
अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम का इर्शाद है कि अल्लाह ने हज़रत इब्राहीम अलैहिस्सलाम की सन्तान में से इस्माईल अलैहिस्सलाम को चुना , फिर इस्माईल अलैहिस्सलाम की औलाद में से किनाना को चुना और किनाना की नस्ल से कुरैश को चुना , फिर कुरैश में से बनू हाशिम को चुना और बनू हाशिम में से मुझे चुना ।
इब्ने अब्बास रजि० का बयान है कि अल्लाह के रसूल सल्लल्लाहु अलैहि व सल्लम ने फ़रमाया , अल्लाह ने तमाम जीवों को पैदा किया , तो मुझे सबसे अच्छे गिरोह में बनाया , फिर इनके भी दो गिरोहों में से ज़्यादा अच्छे गिरोह के अन्दर रखा , फिर कबीलों को चुना , तो मुझे सबसे अच्छे कबीले के अन्दर बनाया , फिर घरानों को चुना तो मुझे सबसे अच्छे घरानों में बनाया , इसलिए मैं अपनी जात ( निज ) के एतबार से भी सबसे अच्छा हूं और अपने घराने के एतबार से भी सबसे बेहतर हूं ।
बहरहाल अदनान की नस्ल जब ज्यादा बढ़ गई तो वह रोजी - रोटी की खोज में अरब के विभिन्न भू - भाग में फैल गई , चुनांचे क़बीला अब्दुल कैस ने , बिक्र बिन वाइल की कई शाखाओं ने और बनू तमीम के परिवारों ने बहरैन का रुख किया और उसी क्षेत्र में जा बसे ।
बनू हनीफ़ा बिन साब बिन अली बिन बिक्र ने यमामा का रुख किया और उसके केन्द्र हिज्र में आबाद हो गये । बिक्र बिन वाइल की बाक़ी शाखाओं ने , यमामा से लेकर बहरैन , काजिमा तट , खाड़ी , सवादे इराक , उबुल्ला और हय्यत तक के इलाकों में रहना - सहना शुरू कर दिया ।
बनू तग़लब फरातिया द्वीप में जा बसे , अलबत्ता उनकी कुछ शाखाओं ने बनूं बिक्र के साथ रहना - सहना पसन्द किया । बनू तमीम बादिया बसरा में जाकर आबाद हो गए ।
बनू सुलैम ने मदीना के करीब डेरे डाले । उनकी आबादी वादिल कुरा से शुरू होकर खैबर और मदीना के पूरब से गुज़रती हुई हर्रा बनू सुलैम से मिले दो पहाड़ों तक फैली हुई थी ।
बनू सक़ीफ़ तायफ़ में रहने - सहने लगे और बनू हवाज़िन ने मक्का के पूरब में औतास घाटी के आस - पास डेरे डाले । उनकी आबादी मक्का - बसरा राजमार्ग पर स्थित थी ।
बनू असद तैमा के पूरब और कूफ़ा के पश्चिम में आबाद हो गए थे । उनके और तैमा के बीच बनू तै का एक परिवार बहतर आबाद था । बनू असद की आबादी और कूफ़े के बीच पांच दिन की दूरी थी ।
बनू ज़िबयान तैमा के क़रीब हौरान के आस - पास आबाद हो गये थे । - तिहामा में बन किनाना के परिवार रह गये थे । इनमें से कुरैशी परिवारों का रहना - सहना मक्का और उसके आस - पास था । ये लोग बिखरे हुए थे , ये आपस में बंधे हुए न थे , यहां तक कि कुसई बिन किलाब उभरा और कुरैशियों को एक बनाकर उन्हें मान - सम्मान और उच्च व श्रेष्ठ स्थान दिलाया ।