अबू जल जब किसी प्रतिष्ठित और शक्तिशाली आदमी के मुसलमान होने की खबर सुनता तो उसे बुरा - भला कहता , जलील व रुसवा करता और माल को बड़े घाटे से दोचार करने की धमकियां देता और अगर कोई कमज़ोर आदमी मुसलमान होता तो उसे खुद भी मारता और दूसरों को भी भड़का देता । हज़रत उस्मान बिन अफ़्फ़ान रज़ियल्लाहु अन्हु का चचा उन्हें खजूर की चटाई में लपेट कर नीचे से धुवां देता । हज़रत मुसअब बिन उमैर रज़ियल्लाहु अन्हु की मां को उनके इस्लाम लाने की जानकारी हई तो उनका दाना - पानी बन्द कर दिया और घर से निकाल दिया । बड़े लाड़ - प्यार से पले थे , जब परेशानियों से दोचार हुए तो खाल इस तरह उधड़ गई , जैसे सांप केंचुली छोड़ता है । सुहैब बिन सिनान रूमी रज़ियल्लाहु अन्हु को इतनी सजा दी जाती कि होश व हवास जाता रहता और उन्हें यह पता न चलता कि वह क्या बोल रहे हैं । हज़रत बिलाल रज़ियल्लाहु अन्हु उमैया बिन खल्फ जुमही के गुलाम थे । उमैया उनकी गरदन में रस्सी डालकर लड़कों के हवाले कर देता और वह उन्हें मक्का के पहाड़ों में घुमाते और खीचते फिरते , यहां तक कि गरदन पर रस्सी का निशान पड़ जाता फिर भी वह ' अहद - अहद ' कहते रहते । खुद उमैया भी उन्हें बांधकर डंडे से मारता और चिलचिलाती धूप में जबरन बिठाए रखता , खाना - पानी भी न देता , बल्कि भूखा - प्यासा रखता और इन सबसे बढ़कर यह काम करता कि जब दोपहर की गर्मी बहुत ज़्यादा होती , तो मक्का के पथरीले कंकरों पर लिटाकर सीने पर भारी पत्थर रखवा देता , फिर कहता , अल्लाह की कसम ! तू इसी तरह पड़ा रहेगा , यहां तक कि मर जाए या मुहम्मद के साथ कुफर और लात व उज्जा की पूजा करे ।
हज़रत बिलाल रजि० इस हालत में भी कहते . अहद , अहद और फ़रमाते , अगर मुझे कोई ऐसा कलिमा मालूम होता , जो तम्हें इससे भी ज़्यादा नागवार होता , तो मैं उसे कहता । एक दिन यही कार्रवाई जारी थी कि हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु का गुज़र हुआ । उन्होंने हज़रत बिलाल रजि० को एक काले गुलाम के बदले और कहा जाता है कि दो सौ दिरहम ( 735 ग्राम चांदी ) या दो सौ अस्सी दिरहम ( एक किलो से ज़्यादा चांदी ) के बदले खरीद कर आज़ाद कर दिया । हज़रत अम्मार बिन यासिर रज़ियल्लाहु अन्हु बनू मजूम के गुलाम थे । उन्होंने और उनके मां - बाप ने इस्लाम कुबूल किया , तो उन पर क़ियामत टूट पड़ी । मुशरिक , जिनमें अब जहल पेश - पेश था , कड़ी धूप के वक़्त , पथरीली जमीन पर ले जाकर उसके तपन से सज़ा देते । एक बार उन्हें इस तरह सज़ा दी जा रही थी कि मोहम्मद का गुज़र हुआ । आपने फरमाया , आले यासिर ! सब्र करना , तुम्हारा ठिकाना जन्नत है । आखिरकार यासिर जुल्म की ताब न लाकर वफ्रात पा गए और हज़रत सुमैया रजि० जो हजरत अम्मार रजि० की मां थीं , अब जल ने उनकी शर्मगाह में भाला मारा और वह दम तोड़ गई । यह इस्लाम में पहली शहीदा हैं । उनके बाप का नाम ख़य्यात था और यह अबू हुज़ैफ़ा बिन मुगीरह बिन अब्दुल्लाह की लौंडी थीं । बहुत बूढ़ी और कमजोर थीं । हज़रत अम्मार रजि० पर सख्ती का सिलसिला जारी रहा । उन्हें कभी धूप में तपाया जाता , तो कभी उनके सीने पर पत्थर रख दिया जाता और कभी पानी में डुबोया जाता , यहां तक कि वह होश व हवास खो बैठते । उनसे मुशरिक कहते थे कि जब तक तुम मुहम्मद को गाली न दोगे या लात व उज़्ज़ा के बारे में कलिमा खैर न कहोगे , हम तुम्हें न छोड़ेंगे । मजबूर होकर उन्होंने मुशरिकों की बात मान ली , फिर मोहम्मद के पास रोते हुए और माज़रत करते हुए आए , इस पर यह आयत उतरी ' जिसने अल्लाह पर ईमान लाने के बाद कुफर किया , ( उस पर अल्लाह का गुस्सा और अज़ाब ज़बरदस्त है ) , लेकिन जिसे मजबूर किया जाए और उसका दिल अल्लाह पर मुतमइन हो ( उस पर कोई पकड़ नहीं )
हज़रत अबू फ्रकीह , जिनका नाम अफ़लह ६ , यह असल में क़बीला उज्द से थे । और बनू अब्दुद्दार के गुलाम थे । उनके पांवों में लोहे की बेड़ियां डालकर दोपहर की सख्त गर्मी में बाहर निकालते और जिस्म से कपड़े उतार कर तपती हई जमीन पर पेट के बल लिटा देते और पीठ पर भारी पत्थर रख देते कि हरकत न कर सकें । वह इसी तरह पड़े - पड़े होश व हवास खो बैठते । उन्हें इसी तरह की सज़ाएं दी जाती रहीं , यहां तक कि हब्शा की दूसरी हिजरत में वह भी हिजरत कर गए । एक बार मुशरिकों ने उनका पांव रस्सी में बांधा और घसीट कर तपती हुई जमीन पर डाल दिया , फिर इस तरह गला दबा दिया कि समझे यह मर गए हैं । इसी दौजांघ हज़रत अबूबक्र रजि० का गुज़र हुआ , उन्होंने खरीद कर अल्लाह के लिए आज़ाद कर दिया । हज़रत ख़ब्बाब बिन अरत्त क़बीला खुज़ाआ की एक औरत उम्मे अम्मार के एक गुलाम थे और लोहारी का काम करते थे । मुसलमान हुए तो उनकी मालकिन उन्हें आग से जलाने की सज़ा देती । वह लोहे का गर्म टुकड़ा लाती और उनकी पीठ या सर पर रख देती , ताकि वह मुहम्मद मोहम्मद के साथ कुफर करें , मगर इससे उनके ईमान और तस्लीम व रज़ा में और बढ़ोत्तरी होती । मुश्किीन भी तरह - तरह की सज़ाएं देते , कभी सख्ती से गरदन मरोड़ते , तो कभी सर के बाल नोचते । एक बार तो उन्हें धधकते अंगारो पर डाल दिया , फिर उस पर घसीटा और दबाए रखा , यहां तक कि उनकी पीठ की चरबी से आग बुझी ।
हज़रत ज़मीरह रूमी लौडी थी , मुसलमान हुई तो उन्हें अल्लाह की राह में सज़ाएं दी गई । इत्तिफ़ाक़ से उनकी आंखें जाती रहीं । मुशरिकों ने कहा , देखो , तुम पर लात व उज़्ज़ा की मार पड़ गई है । उन्होंने कहा , नहीं , अल्लाह की क़सम ! यह लात व उज्जा की मार नहीं है , बल्कि यह अल्लाह की ओर से है अगर वह चाहे तो दोबारा बहाल कर सकता है , फिर अल्लाह का करना ऐसा हुआ कि दूसरे दिन निगाग पलट आई । मुशरिक कहने लगे , यह मुहम्मद का जादू उम्मे अबीस बनू ज़ोहरा की लौडी थीं । वह इस्लाम लाईं तो मुशरिकों ने उन्हें भी सजाएं दीं , मुख्य रूप से उनका मालिक अस्वद बिन अब्दे यगूस उन्हें सज़ाएं देता । वह मोहम्मद का बड़ा कट्टर दुश्मन था और आपका मज़ाक़ उड़ाया करता था । बन अदी के उमैर बिन सोयल की लौंडी मुसलमान हुई तो उमर बिन खत्ताब उन्हें सजाएं देते , वह अभी मुसलमान नहीं हुए थे । उन्हें इतना मारते कि मारते - मारते थक जाते , फिर छोड़कर कहते , अल्लाह की कसम ! मैने तुझे किसी मरव्वत की वजह से नहीं , बल्कि सिफ़ ) थक कर छोड़ा है । वह कहती , तेरे साथ तेरा परवरदिगार भी ऐसा ही करेगा । हज़रत नदिया और उनकी बेटी भी बनू अब्दुद्दार की एक औरत की लौंडी थीं । इस्लाम ले आई तो उन्हें भी सज़ाओं से दोचार होना पड़ा । गुलामों में आमिर बिन फुहैरा भी थे । इस्लाम लाने पर उन्हें भी इतनी सज़ाएं दी जातीं कि वह अपने होश व हवास खो बैठते और उन्हें यह पता न चलता कि क्या बोल रहे हैं । रज़ियल्लाहु अन्हुम व अन्हुन - न अजमईन० हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु ने इन सारे गुलामों और लौडियों को खरीद कर आज़ाद कर दिया । इस पर उनके बाप अबू कहाफा उन पर गुस्सा हए कहने लगे ( बेटे ) मैं तुम्हें देखता हूं कि कमज़ोर गरदने आज़ाद कर रहे हो , मज़बूत लोगों को आज़ाद करते तो वे तुम्हारा बचाव भी करते । उन्होंने कहा , मैं अल्लाह की रिज़ा चाहता हूं , इस पर अल्लाह ने कुरआन उतारा । हज़रत अबूबक्र रजि० की प्रशंसा की और उनके दुश्मनों की निंदा की । फ़रमाया , ' मैंने तुम्हें भडकती हई आग से डराया है , जिसमें वहा बद - बख्त दाखिल होगा जिसन झठलाया और पीठ फेरी । इससे मराद उमैया बिन खल्फ और उसके साथी हैं . फिर फ़रमाया , ' और उस आग से वह परहेज़गार आदमी दूर रखा जाएगा जो अपना माल पाकी हासिल करने के लिए खर्च कर रहा है । उस पर किसी का एहसान नहीं है , जिसका बदला दिया जा रहा हो , बल्कि सिर्फ अपने बुजुर्ग रब की मी की तलब रखता है । इससे मुराद हज़रत अबूबक्र रज़ियल्लाहु अन्हु हैं । हज़रत अबूबक्र सिद्दीक़ रज़ि० को भी पीड़ा दी गई । उन्हें और उनके साथ तलहा बिन उबैदुल्लाह को नौफुल बिन खुवेलद ने पकड़ कर एक ही रस्सी में बांध दिया , ताकि उन्हें नमाज़ न पढ़ने दे , बल्कि दीने इस्लाम से भी बाज़ रखे । मगर उन्होंने उसकी बात न सुनी । इसके बाद उसे यह देखकर हैरत हई कि वे दोनों बन्धन से आजाद और नमाज़ में लगे हुए हैं । इस वाकिए के बाद इन दोनों को करीनैन - एक साथ बंधे हुए कहा जाता था । कहा जाता है कि यह काम नौफुल के बजाए तलहा बिन उबैदुल्लाह रज़ियल्लाह अन्ह के भाई उस्मान बिन उबैदुल्लाह ने किया था ।
सार यह कि मश्किों को जिस किसी के बारे में भी मालूम हआ कि वह मुसलमान हो गया है तो उसको पीड़ा ज़रूर पहुंचाई और कमजोर मुसलमानों , मुख्य रूप से गुलामों और लौडियों के बारे में यह काम आसान भी था , क्योंकि कोई न था , जो उनके लिए गुस्सा होता और उनकी हिमायत करता , बल्कि उनके सरदार और मालिक उन्हें खुद ही सज़ाएं देते थे और बदमाशों को भी उभारते थे अलबत्ता बड़े लोगों और अशराफ़ में से कोई मुसलमान होता तो उसको पीड़ा पहुंचाना ज़रा आसान न होता , क्योंकि वह अपनी क़ौम की हिफ़ाज़त और बचाव में होता । इसलिए ऐसे लोगों पर खुद उनके अपने कबीले के अशराफ़ के सिवा कम ही कोई जुर्रत करता था , वह भी बहुत बच - बचाकर और सोच - समझ कर ।
मोहम्मद के बारे में मुशरिकों की सोच जहां तक मोहम्मद के मामले का ताल्लुक़ है , तो यह बात याद रखनी चाहिए कि आप रौब व दबदबा और वकार की मालिक शख्सियत थे । दोस्त - दुश्मन सभी आपका आदर करते थे । आप जैसी शख्सियत का सामना मान - सम्मान ही से किया जा सकता था और आपके खिलाफ किसी नीच और ज़लील हरकत की जुर्रात कोई नीच और मूर्ख ही कर सकता था ।
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