Tuesday, 8 October 2019

हज़रत ख़दीजा रज़ि० से विवाह

जब आप मक्का वापस तशरीफ़ लाए और हज़रत ख़दीजा रजि० ने अपने माल में ऐसी अमानत और बरकत देखी , जो इससे पहले कभी न देखी थी और इधर उनके दास मैसरा ने आपके मीठे चरित्र और उच्च आचरण , ठंडी सोच , सच्चाई और ईमानदाराना तौर - तरीके के बारे में उद्गार रखे , तो हज़रत ख़दीजा रजि० को जैसे अपना खोया हुआ हीरा मिल गया उससे पहले बड़े - बड़े सरदार और रईस उनसे विवाह की इच्छा रखते थे , लेकिन उन्होंने किसी का सन्देश नहीं स्वीकार किया था , अब उन्होंने अपने दिल की बात अपनी सहेली नफीसा बिन्त मुनब्बह से कही और नफ़ीसा ने जाकर मोहम्मद से बातें की ।
     आप तैयार हो गए और अपने चचा से इस मामले में बात की । उन्होंने हज़रत ख़दीजा रजि० के चचा से बात की और विवाह का पैग़ाम दिया । इसके बाद विवाह हो गया । निकाह में बनी हाशिम और मुज़र के सरदार शरीक हुए यह शाम देश से वापसी के दो महीने बाद की बात है ।
     आपने मह में बीस  ऊंट दिए । उस वक़्त हज़रत ख़दीजा की 40वर्ष की थी और वह वंश - धन , सूझ - बूझ की दृष्टि से अपनी क़ौम में सबसे अधिक प्रतिष्ठा प्राप्त महिला थीं । यह पहली महिला थीं , जिनसे मोहम्मद  ने विवाह किया और उनकी मृत्यु तक किसी दूसरी महिला से विवाह नहीं किया । इबाहीम के अलावा मोहम्मद  की तमाम सन्तानें उन्हीं से थीं । सबसे पहले क़ासिम पैदा हुए और उन्हीं के नाम पर आपको अबुल क़ासिम ( क़ासिम के बाप ) के उपनाम से जाना जाने लगा , फिर जैनब , रुकैया , उम्मे कुलसम , फातिमा और अब्दुल्लाह पैदा हए ।     अब्दुल्लाह की उपाधि तैयब और ताहिर थी । आपके सब बच्चे बचपन ही में मृत्यु की गोद में चले गए । अलबत्ता बच्चियों में से हर एक ने इस्लाम का ज़माना पाया , मुसलमान हुईं और हिजरत की । लेकिन हज़रत फातिमा के सिवा बाकी सब का देहान्त आपकी जिंदगी ही में हो गया । हज़रत फातिमा की मृत्यु आपके छ : महीने बाद हुई ।

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