Tuesday, 1 October 2019

हाथी की घटना

दूसरी हाथी की घटना

दूसरी घटना का सार यह है कि अबरहा सबाह हब्शी ने जो नजाशी बादशाह हब्श की ओर से यमन का गवर्नर जनरल था जब देखा कि अरब खाना काबा का हज करते हैं तो सनआ में एक बहुत बड़ा चर्च बनवाया और चाहा कि अरब का हज उसी की ओर फेर दे मगर जब इसकी खबर बनू किनाना के एक व्यक्ति को हुई तो उसने रात के वक़्त चर्च में घुस कर उसके किबले पर पाखाना पोत दिया अबरहा को पता चला तो बहुत बिगड़ा और साठ हज़ार की एक भारी सेना  लेकर काबा को ढाने के लिए निकल खड़ा हुआ ।
    उसने अपने लिए एक जबरदस्त हाथी भी चुना । सेना में कुल नौ या तेरह हाथी थे । अबरहा यमन से धावा बोलता हुआ मुग़म्मस पहुंचा और वहां अपनी सेना को तीब देकर और हाथी को तैयार करके मक्के में दाखिले के लिए चल पड़ा । जब मुज़दलफ्रा और भिना के बीच मुहस्सिर की घाटी में पहुंचा तो हाथी बैठ गया और काबे की ओर बढ़ने के लिए किसी तरह न उठा । उसका रुख उत्तर दक्षिण या पूरब की ओर किया जाता तो उठकर दौड़ने लगता लेकिन काबे की ओर किया जाता तो बैठ जाता । इसी बीच अल्लाह ने चिड़ियों का एक झुंड भेज दिया जिसने सेना पर ठीकरी जैसे पत्थर गिराए और अल्लाह ने उसी से उन्हें खाए हुए भुस की तरह बना दिया । ये चिड़ियां अबाबील जैसी थीं । हर चिड़िया के पास तीन - तीन कंकड़ियां थीं - एक चोंच में और दो पंजों में । कंकड़ियां चने जैसी थीं मगर जिस किसी को लग जाती थीं उसके अंग कटना शुरू हो जाते थे और वह मर जाता था । ये कंकड़ियां हर आदमी को नहीं लगी थीं लेकिन सेना में ऐसी भगदड़ मची कि हर व्यक्ति दूसरे को रौंदता - कचलता गिरता - पड़ता भाग रहा था । फिर भागने वाले हर राह पर गिर रहे थे और हर चश्मे पर मर रहे थे । इधर अबरहा पर अल्लाह ने ऐसी आफ़त भेजी कि उसकी उंगलियों के पोर झड़ गए और सनआ पहुंचते - पहुंचते चूजे जैसा हो गया । फिर उसका सीनः फट गया दिल बाहर निकल आया और वह मर गया ।
      अबरहा के इस हमले के मौके पर मक्का के निवासी जान के डर से घाटियों में बिखर गए थे और पहाड़ की चोटियों पर जा छिपे थे । जब सेना पर अज़ाब आ गया तो इत्मीनान से अपने घरों को पलट आए ।
     यह घटना अधिकांश विशेषज्ञों के अनुसार मोहम्मद की पैदाइश से सिर्फ पचास या पचपन दिन पहले मुहर्रम महीने में घटी थी इसलिए यह सन् 571 ई० की फरवरी के आखिर की या मार्च के शुरू की घटना है । सच तो यह है कि यह एक आरंभिक निशानी थी जो अल्लाह ने अपने नबी और अपने काबा के लिए ज़ाहिर फ़रमाई थी क्योंकि आप बैतुल - मविदस को देखिए कि अपने युग में मुसलमानों का क़िबला था और वहां के रहने वाले मुसलमान थे । इसके बावजूद उस पर अल्लाह के दश्मन अर्थात मुशरिकों का कब्जा हो गया था जैसा कि बख्ने नस्र के हमले ( 587 ई०पू० ) और रूम वालों के कब्जे ( सन् 70 ई० ) से ज़ाहिर है । लेकिन इसके बिल्कल उलट काबे पर ईसाइयों को कब्जा न मिल सका हालांकि उस वक़्त यही मुसलमान थे और काबे के रहने वाले मुशरिक थे । फिर यह घटना ऐसी परिस्थितियों में घटित हुई कि इसकी खबर उस वक़्त के सभ्य जगत के अधिकांश क्षेत्रों अर्थात रूम और फारस में तुरन्त पहुंच गई क्योंकि हब्शा का रूमियों से बड़ा गहरा ताल्लुक था और दूसरी ओर फ्रारसियों की नज़र रूमियों पर बराबर रहती थी और वह रूमियों और उनके मित्रों के साथ होने वाली घटनाओं का बराबर जायज़ा लेते रहते थे । यही वजह है कि इस घटना के बाद फ़ारस वालों ने यमन पर बड़ी तेजी से क़ब्ज़ा कर लिया ।
    अब चूंकि यही दो राज्य उस वक़्त सभ्य जगत के अहम भाग के प्रतिनिधि थे इसलिए इस घटना की वजह से दुनिया की निगाहें खाना काबा की ओर उठने लगी । उन्हें बैतुल्लाह की बड़ाई का एक खुला हुआ खुदा का निशान दिखाई पड़ गया और यह बात दिलों में अच्छी तरह बैठ गई कि इस घर को अल्लाह ने पावनता के लिए चुन लिया है इसलिए आगे यहां की आबादी से किसी व्यक्ति का नबी होने के दावे के साथ उठना इस घटना के तक़ाज़े के अनुकूल ही होगा और उस खुदाई हिक्मत की तफ़सीर होगा जो कार्य - कारण के नियम से ऊपर उठकर ईमान वालों के खिलाफ़ मुश्रिकों की सहायता में छिपी हुई थी ।

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