Monday, 7 October 2019

3 साल तक कोई आयत नहीं उतरा

रही यह बात कि आयत कितने दिनों तक बन्द रही , तो इस सिलसिले में इब्ने साद ने इब्ने अब्बास रज़ि० से एक रिवायत नक़ल की है , जिसका सार यह है कि यह रोक कुछ दिनों के लिए थी और सारे पहलुओं पर नज़र डालने के बाद यही बात ज़्यादा यक़ीनी मालूम होती है और यह जो मशहूर है कि आयत पर रोक तीन या ढाई साल तक रही , तो बिल्कुल सही नहीं । रिवायतों और विद्वानों की रायों पर नज़र डालने के बाद मैं एक विचित्र नतीजे पर पहुंचा हूं , जिसका उल्लेख किसी विद्वान के यहां नहीं है ।
    इसका स्पष्टीकरण यह है कि रिवायतों और विद्वानों के कथनों से मालूम होता है कि आप मोहम्मद हिरा की गुफा में हर साल एक महीना तशरीफ़ रखते थे और यह रमज़ान का महीना हुआ करता था । यह काम आपन नुबूवत के तीन साल पहले से शुरू किया था और नुबूवत के साथ इस काम का आखिरी साल था । फिर रमज़ान के खात्मे के साथ हिरा में आपका ठहरना खत्म हो जाता था और आप सुबह को , यानी पहली शव्वाल की सुबह को घर वापस आ जाते थे । इधर दोनों सहीहों की रिवायतों में यह बात स्पष्ट रूप से बयान की गई है कि आयत पर रोक लगने के बाद दोबारा जिस वक़्त आयत आनी शुरू हुई है , उस वक़्त आप हिरा की गुफा में अपने ठहरने का महीना पूरा करके घर तशरीफ़ ला रहे थे
    इससे यह नतीजा निकलता है कि जिस रमज़ा में आप मोहम्मद को नुबूवत मिली और आयत आनी शुरू हुई , उसी रमज़ान के खात्मे के बाद पहली शव्वाल को दोबारा वस्य आई , क्योंकि यह हिरा में आपके ठहरने का आखिरी मौका था और जब यह बात साबित है कि आप पर पहली वस्य 21 रमजान सोमवार की रात उतरी तो उसका अर्थ यह हुआ कि वस्य पर रोक कुल दस दिन थी और दोबारा उसका आना जमेरात ( वहस्पतिवार , पहली शव्वाल सन् 01 नुबूवत को हुआ और शायद यही वजह है कि रमजान के आखिरी दहे को एतकाफ के लिए खास किया गया है और पहली शव्वाल को ईद के लिए । ( अल्लाह बेहतर जाने ) आयत पर इस रोक की मुद्दत में मोहम्मद  दुखी रहे और आप चकित थे , इसलिए सहीह बुखारी ' किताबुत्ताबीर ' की रिवायत है कि
   ' आयत बन्द हो गई , जिससे मोहम्मद इतने दुखी हुए कि कई बार ऊंचे पहाड़ की चोटियों पर तशरीफ ले गए कि वहां से लुढ़क जाएं , लेकिन जब किसी पहाड़ की चोटी पर पहुंचते कि आप अपने आपको लुढ़का दें , तो हज़रत जिबील प्रकट होते और फ़रमाते , ऐ मुहम्मद ! आप अल्लाह के सच्चे रसूल हैं और इसकी वजह से आपकी बेचैनी थम जाती , जी को करार आ जाता और आप वापस आ जाते । फिर जब आप पर आयत की बन्दिश लंबी हो जाती तो आप फिर उसी जैसे काम के लिए निकलते , लेकिन जब पहाड़ की चोटी पर पहुंचते तो हज़रत जिबील प्रकट होकर फिर वही बात दोहराते ।

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