सूरः मुद्दस्सिर की आरंभिक आयतों - ' या ऐयुहल मुद्दस्सिर ' से ' व लिरब्बि - क फ़स्बिर ' तक में मोहम्मद को कई हुक्म दिए गए हैं जो देखने में बहुत छोटे और सादा हैं , लेकिन सच में बड़े दूरगामी उद्देश्यों पर सम्मिलित हैं और बड़े गहरे प्रभाव रखते हैं । इसलिए--
1 . इंज़ार ( डराने ) की आखिरी मंजिल यह है कि दुनिया में अल्लाह की मर्जी के खिलाफ़ जो भी चल रहा हो , उसे उसके खतरनाक अंजाम से सूचित कर दिया जाए और वह भी इस तरह कि खुदा के अज़ाब के डर से उसके दिल व दिमाग़ में हलचल और उथल - पुथल मच जाए ।
2 . रब की बड़ाई और किबियाई बजा लाने की आखिरी मंज़िल यह है कि धरती पर किसी और की किबियाई बाक़ी न रहने दी जाए , बल्कि उसकी शौकत तोड दी जाए और उसे उलटकर रख दिया जाए . यहां तक कि धरती पर सिर्फ अल्लाह की बड़ाई बाक़ी रहे ।
3 . कपड़े की पाकी और गन्दगी से दूरी की आखिरी मंजिल यह है कि भीतर व बाहर की पाकी और तमाम गन्दगियों और खराबियों से नफ़्स ( मन ) की सफाई के सिलसिले में इतना आगे बढ़ जाएं , जो अल्लाह की रहमत के घने साए में उसकी देखभाल , निगरानी , हिदायत और रोशनी के तहत संभव है , यहां तक कि इंसानी समाज का ऐसा श्रेष्ठतम नमूना बन जाएं कि आपकी ओर तमाम भले लोग खिंचते चले आएं और आपकी बड़ाई का एहसास तमाम टेढ़ वालों को हो जाए और इस तरह सारी दुनिया पक्ष या विपक्ष में आपके चारों ओर जमा हो जाए ।
4 . एहसान करके उस पर
ज्यादती न चाहने की आखिरी मंज़िल यह है कि अपनी कोशिशों और कारनामों को बड़ाई और महत्व न दें , बल्कि एक के बाद दूसरे काम के लिए जद्दोजेहद करते जाएं और बड़े स्तर पर कुर्बानी और बलिदान करके उसे इस अर्थ में भलाते जाएं कि यह हमारा कोई कारनामा है यानी अल्लाह की याद और उसके सामने जवाबदेही का एहसास अपनी मेहनतों और कोशिशों पर छाया रहे ।
5 . आख़िरी आयत में इशारा है अल्लाह की ओर दावत का काम ( यानी बुलाने ) का काम शुरू करने के बाद विरोधियों की ओर से , विरोध , निन्दा , हंसी - ठट्ठों की शक्ल में कष्ट पहुंचाने से लेकर आपको और आपके साथियों को क़त्ल करने और आपके पास जमा होने वाले ईमान वालों को नेस्त व नाबूद करने तक की भरपूर कोशिशें होंगी और आपको इन सबसे वास्ता पड़ेगा ।
इस स्थिति में आपको बड़ी दृढ़ता और धीरज के साथ जमना होगा , वह भी इसलिए नहीं कि इस सब के बदले किसी मनोकामना की पूर्ति की आशा हो , बल्कि सिर्फ अपने पालनहार की मर्जी और उसके दीन की सरबुलन्दी के लिए जमना । ( व लिरब्बि - क फ़स्बिर ) अल्लाहु अक्बर ! ये आदेश अपने प्रत्यक्ष रूप में कितने सादा और संक्षिप्त हैं और शब्दों के प्रयोग ने कितनी शान्ति और लुभावना संगीत पैदा कर दिया है , लेकिन कार्य और उद्देश्य की दृष्टि से ये आदेश कितने भारी , कितने महान और कितने कठिन हैं और इनके नतीजे में कितनी बड़ी चौमुखी आंधी चल पड़ेगी , जो सारी दुनिया के कोने - कोने को हिलाकर और एक को दूसरे से गुथकर रख देगी ।
इन्हीं उपरोक्त आयतों में दावत व तब्लीग़ ( प्रचार - प्रसार ) की सामग्री भी मौजूद है । इंज़ार का मतलब ही यह है कि इंसानों के कुछ कर्म ऐसे हैं जिनका अंजाम बुरा है और यह सबको मालूम है कि इस दुनिया में लोगों को न तो उनके सारे कर्मों का बदला दिया जाता है और न दिया जा सकता है , इसलिए इंज़ार का एक तक़ाज़ा यह भी है कि दुनिया के दिनों के अलावा एक दिन ऐसा भी होना चाहिए जिसमें हर कर्म का पूरा - पूरा और ठीक - ठीक बदला दिया जा सके यानी क़ियामत का दिन जज़ा का दिन और बदले का दिन है . फिर उस दिन बदला दिए जाने का ज़रूरी तक़ाज़ा है कि हम दुनिया में जो ज़िंदगी गुजार रहे हैं , उसके अलावा भी एक जिंदगी हो ।
शेष आयतों में बन्दों से यह मांग की गई है कि वे ख़ालिस तौहीद ( विशुद्ध एकेश्वरवाद ) अपनाएं । अपने सारे मामले अल्लाह को सौंप दें और अल्लाह की मी पर नफ़्स व ख्वाहिश ( मनोकामना ) और लोगों की मज़ी को छोड़ दें । इस तरह दावत व तब्लीग़ ( प्रचार - प्रसार ) की सामग्री का सार यह हुआ
( क ) तौहीद ,
( ख ) आख़िरत के दिन पर ईमान ,
( ग ) नफ्स के तकिए ( मनोनिग्रह ) की व्यवस्था , यानी बुरे अंजाम तक ले जाने वाले गंदे और बेहयाई के कामों से परहेज़ और सत्कर्मों और भलाई के कामों में लगे रहने की कोशिश ।
( घ ) अपने सारे मामलों को अल्लाह के हवाले और सुपुर्द करना ।
( ङ ) फिर इस सिलसिले की आखिरी कड़ी यह है कि यह सब कुछ मोहम्मद की रिसालत पर ईमान लाकर आपके महान नेतृत्व और आपकी मूल्यवान बातों की रोशनी में अंजाम दिया जाए । फिर इन आयतों का आधार अल्लाह की आवाज़ यानी एक आसमानी पुकार है , जिसमें मोहम्मद को उस बड़े और भारी काम के लिए उठने और नींद से बचकर और बिस्तर की गर्मी से निकल कर अथक परिश्रम और कष्ट के मैदान में आने के लिए कहा गया है ।
' ऐ चादर लपेट कर लेटने वाले उठ और डरा ' , मतलब यह कहा जा रहा है कि जिसे अपने लिए जीना है , वह तो राहत की जिंदगी गुजार सकता है , लेकिन आप , जो इस ज़बरदस्त बोझ को उठा रहे हैं , तो आपको नींद से क्या ताल्लुक ? सख - वैभव को सामग्रियों से क्या लेना - देना ? आव उठ जाइए उस महान कार्य के लिए जो आपका इन्तिज़ार कर रहा है , उस भारी बोझ के लिए जो आपके लिए तैयार है , उठ जाइए अथक परिश्रम के लिए , थकन और मेहनत के लिए उठ जाइए कि अब नींद और राहत का वक़्त गुज़र चुका । अब आज से बराबर जागना है और लम्बा और मशक्क़त भरा जिहाद है , उठ जाइए और इस काम के लिए मुस्तैद और तैयार हो जाइए ।
यह बहुत भारी और ज़ोरदार बात है , इसने मोहम्मद को शांत घर , गर्म गोद और नर्म बिस्तर से खींच कर तेज़ तूफानों और जोरदार झक्कड़ों के बीच अथाह समुद्र में फेंक दिया और लोगों की अन्तरात्मा और जीवन की वास्तविकताओं की खींचतान के बीच ला खड़ा किया । फिर मोहम्मद उठ खड़े हुए और बीस साल की मुद्दत तक उठे रहे । सुख - वैभव त्याग दिया , ज़िंदगी अपने लिए और बीवी - बच्चों के लिए न रही , आप उठे तो उठे ही रहे । काम अल्लाह की ओर दावत देना था । आपने यह कमरतोड़ भारी बोझ अपने कंधे पर किसी दबाव के बिना उठा लिया । यह बोझ था इस धरती पर बड़ी अमानत का बोझ , सारी मानवता का बोझ , सारे अक़ीदे ( विश्वास और श्रद्धा ) का बोझ और विभिन्न क्षेत्रों में अथक परिश्रम और प्रतिरक्षा का बोझ । आपने बीस साल से अधिक समय तक लगातार और सर्वव्यापी संघर्ष में जीवन बिताया और इस पूरी मुद्दत में यानी जब से आपने वह आसमानी आवाज़ सुनी और यह भारी ज़िम्मेदारी पाई , आपको कोई एक हालत किसी दूसरी हालत से ग़ाफ़िल न कर सकी । अल्लाह आपको हमारी ओर से और सम्पूर्ण मानवता की ओर से बेहतरीन बदला दे । आगे के पृष्ठों में मोहम्मद के लम्बे और मेहनत भरे जिहाद की एक संक्षिप्त रूप - रेखा है ।
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