Monday, 7 October 2019

कुरेश को हज करने वाले को सूचना देना


 बहरहाल यह प्रस्ताव पास हो गया तो उसे अमली जामा पहनाने की कार्रवाई शुरू हुई । मक्का के कुछ विरोधी हज के लिए आने वालों के अलग - अलग रास्तों पर बैठ गए और वहां से हर गुजरने वाले को आपके ' खतरे ' से आगाह करते हुए आपके बारे में विस्तार से बताने लगे । जहां तक मोहम्मद  का ताल्लुक़ है तो आप हज के दिनों में लोगों के डेरों और उकाज़ , मजना और जुल मजाज़ के बाजारों में तशरीफ़ ले जाते और लोगों को इस्लाम की दावत देते । उधर अबू लहब (मोहम्मद का सगा चाचा)  आपके पीछे - पीछे लगा रहता । और यह कहता कि इसकी बात न मानना , यह झूठा बद - दीन ( विधी ) है । इस दौड़ - धूप का नतीजा यह हुआ कि लोग इस हज से अपने घरों को वापस हुए तो उन्हें यह बात मालूम हो चुकी थी कि आपने नबी होने का दावा किया है और यों उनके ज़रिए पूरे अरब में आपकी चर्चा फैल गई । विरोध के नित नए रूप जब कुरैश ने देखा कि मुहम्मद सल्ल० को दीन की तब्लीग़ ( धर्म - प्रचार ) से रोकने का कोई उपाय सफल नहीं हो रहा है , तो एक बार फिर उन्होंने सोच - विचार किया और आपकी दावत को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिए अलग - अलग तरीके अपनाए , जिनका सार यह है
1 . हंसी , ठठ्ठा , झुठलाना , और अपमानित करना इसका उद्देश्य यह था कि मुसलमानों को बद - दिल करके उनके हौसले तोड़  दिए जाएं । इसके लिए मुशरिकों ने मोहम्मद पर निराधार आरोप लगाए और बेहूदा गालियां भी दीं । इसलिए वे कभी आपको पागल कहते , जैसा कि इर्शाद है ' इन दुश्मनों ने कहा कि ऐ वह व्यक्ति , जिस पर कुरआन उतरा , तू यक़ीनी तौर पर पागल है । ' ( 15 : 6 )  और कभी आप पर जादूगर और झूठे होने का आरोप लगाते । इसलिए इर्शाद ' उन्हें हैरत है कि खुद उन्हीं में से एक डराने वाला आया और दुश्मन कहते हैं कि यह जादूगर है , झूठा है । ( 38 : 4 ) ये दुश्मन आपके आगे - पीछे आक्रोश से भरे हुए , बदले की भावना से ओत - प्रोत और उत्तेजित होकर चलते थे ।  मानो आपके क़दम उखाड़ देंगे और कहते हैं कि यह निश्चय ही पागल ( 68 : 51 ) और जब आप किसी जगह पधार रहे होते और आपके आस - पास कमज़ोर और मज़लूम सहाबा किराम रजि० मौजूद होते , तो उन्हें देखकर ये मुशरिक मज़ाक़ उड़ाते हुए कहते - ' अच्छा , यही लोग हैं , जिन पर अल्लाह ने हमारे बीच से चुनकर एहसान किया है । ' ( 6 : 53 ) जवाब में अल्लाह ने फरमाया ' क्या अल्लाह शुक्रगुज़ारों को सबसे ज़्यादा नहीं जानता ? ' ( 6 : 53 ) आम तौर से मुशरिकों की मनोदशा वही थी , जिसका चित्र नीचे लिखी आयतों में खींचा गया है
   " जो अपराधी थे , वे ईमान लाने वालों का उपहास करते थे और जब उनके पास से गुजरते तो आंखें मारते थे और जब अपने घरों को पलटते थे तो मज़ा लेते हुए पलटते थे और जब उन्हें देखते तो कहते कि यही गुमराह है , हालांकि वे उन पर निगरां बनाकर नहीं भेजे गए थे । ( 83 : 29 - 33 )
    उन्होंने हंसी , ठठ्ठा , उपहास में हद कर दी और ताने देने और अपमानित करने में धीरे - धीरे आगे बढ़ते गए , यहां तक कि मोहम्मद  की तबियत पर उसका असर पड़ा , जैसा कि अल्लाह का इर्शाद है ' हम जानते हैं कि ये लोग जो बातें करते हैं , उससे आपका सीना तंग होता है , लेकिन फिर अल्लाह ने आपको जमाव अता किया और बताया कि सीने यह तंगी किस तरह जा सकती है , इसलिए फ़रमाया ' तो अपने रब की हम्द के साथ उसकी तस्वीह करो और सज्दागुजारों में से हो जाओ ।
    और अपने परवरदिगार की इबादत करे जाओ , यहां तक कि मौत आ जाए । ' और इससे पहले यह भी बतला दिया कि इन उपहास करने वालों से निपटने के लिए अल्लाह ही काफी है । इसलिए फरमाया ' हम आपके लिए उपहास करने वालों से ( निमटने को ) काफ़ी हैं , जो अल्लाह के साथ दूसरे माबूद ठहारते हैं । उन्हें जल्द ही मालूम हो जाएगा । ' ( अल - हिज्र : 95 - 96 ) अल्लाह ने यह भी बतलाया कि उनकी यह हरकत जल्द ही वबाल बनकर उन पर पलटेगी । इसलिए इर्शाद हुआ ' आपसे पहले पैग़म्बरों का भी उपहास किया गया , तो उनकी हंसी उड़ाने वाले , जो उपहास कर रहे थे , उसने उन्हीं को घेर लिया । ' ( अल - अंबिया : 41 )

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