इस पर अबू तालिब ने कहा , ( न पूछो ) , हमें तुम्हें सहयोग देना कितना पसन्द है ? तुम्हारी नसीहत कितनी अपनाने लायक़ है और हम तुम्हारी बात कितनी सच्ची जानते - मानते हैं और यह तुम्हारे बाप का परिवार जमा है और मैं भी उनमें का एक व्यक्ति हूं । अन्तर इतना है कि मैं तुम्हारी पसन्द पूरी करने के लिए इन सब में आगे - आगे हैं . इसलिए तुम्हें जिस बात का हुक्म हुआ है , उसे अंजाम दो । अल्लाह की कसम ! मैं तुम्हारी लगातार हिफाज़त और मदद करता रहूंगा , अलबत्ता मेरी तबियत अब्दुल मुत्तलिब का दीन छोड़ने पर राजी नहीं ।
अबू लहब (मोहम्मद का सगा चाचा) ने कहा , यह ख़ुदा की कसम ! बुराई है । इसके हाथ दूसरों से पहले तुम लोग खुद ही पकड़ लो । इस पर अबू तालिब ने कहा , खुदा की कसम , जब तक जान में जान है , हम इनकी रक्षा करते रहेंगे ।
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