Monday, 7 October 2019

आयतों की किस्में और धमकियां

  यही आयतें आप मोहम्मद की रिसालत का आरंभ - बिंदु हैं । रिसालत आपकी नुबूवत से उतने ही दिन पीछे है , जितने दिन वस्य बन्द रही । इसमें दो किस्म की बातों का आपको ज़िम्मेदार बताया गया है , उसके नतीजे भी बतलाए गए हैं ।
     पहली किस्म तब्लीग़ ( प्रचार ) और डरावे की है जिसका हुक्म ' कुम फ़ - अन्जिर ' ( खड़े हो जाओ और डराओ ) से दिया गया है , क्योंकि इसका मतलब यह है कि आप उठ जाइए और बता दीजिए कि लोग महान अल्लाह के अलावा दूसरों की पूजा करके और उसकी जात व सिफात और अफ़आल व हुकूक़ में दूसरों को शरीक ठहरा कर जिस ग़लती व गुमराही में फंसे हुए हैं , अगर उससे बाज़ न आए तो उन पर अल्लाह का अज़ाब आ पड़ेगा ।
    दूसरी किस्म , जिसकी जिम्मेदारी आपको दी गई है , यह है कि आप अपनी जात पर अल्लाह का हक्म लाग करें और अपनी हद तक उसकी पाबन्दी करें , ताकि एक तरफ़ आप अल्लाह की मी हासिल कर सकें और दूसरी तरफ़ ईमान लाने वालों के लिए बेहतरीन नमूना भी हों । इसका हुक्म बाक़ी आयतों में हैं , इसलिए ' व रब्ब - क फ़कब्बिर ' का मतलब यह है कि अल्लाह को बड़ाई के साथ खास करें और इसमें किसी को भी इसका शरीक न ठहराएं । और ' सिया - ब - क फ़तरिहर ' ( अपने कपड़े पाक रख ) का मक्सूद यह है कि कपड़े और जिस्म पाक रखें , क्योंकि जो अल्लाह के हुजूर खड़ा हो और उसकी बड़ाई बयान करे , किसी तरह सही नहीं कि वह गन्दा और नापाक हो और जब जिस्म और पहनावे तक की पाकी मतलूब हो तो शिर्क और अख़्लाक़ व किरदार की गन्दगी से पाकी कहीं ज़्यादा मतलूब होगी । ' वर - रुज - ज़ फहजुर ' का मतलब यह है कि अल्लाह की नाराज़ी और उसके अज़ाब की वज्हों से दूर रहो और उसकी शक्ल यही है कि उसकी इताअत ज़रूरी समझो और नाफरमानी से बचो और ला तम्नुन तस्तक्सिर ' का मतलब यह है कि किसी एहसान का बदला लोगों से न चाहो , या जैसा एहसान किया है उससे बेहतर बदले की उम्मीद इस दुनिया में न रखो ।
  आख़िरी आयत में चेतावनी दी गई है कि अपनी क़ौम से अलग दीन अपनाने , उसे अल्लाह वरदह ला शरी - क लह की दावत देने और उसके अज़ाब और पकड़ से डराने के नतीजे में क़ौम की तरफ़ से तक्लीफ़ों का सामना करना होगा , इसलिए फ़रमाया गया , ' व लि रब्बि - क फ़स्बिर ' ( अपने परवरदिगार के लिए सब्र करना ) फिर इन आयतों की शरुआत अल्लाह की आवाज में एक आसमानी आवाज से हो रही है , जिसमें मोहम्मद को उस महान काम के लिए उठने और नींद की चादर ओढ़ने और बिस्तर की गर्मी से निकलकर जिहाद व कोशिश और मशक्कत के मैदान में आने के लिए कहा गया है ।
' या ऐयुहल मुद्दस्सिर , कुम फ़ - अन्जिर ' ( ऐ चादर ओढ़ने वाले ! उठ और डरा ) मतलब यह कहा जा रहा है कि जिसे अपने लिए जीना है , वह तो ( राहत की जिंदगी गुजार सकता है , लेकिन आप जो इस जबरदस्त बोझ को उठा रहे हैं , तो आपको नींद से क्या ताल्लुक़ ? आपको राहत से क्या सरोकार ? आपको गर्म बिस्तर से क्या मतलब ? शान्तिमय जीवन से क्या ताल्लुक ? सुख - सुविधा वाले साज़ व सामान से क्या वास्ता ? आप उठ नाइए उस बड़े काम के लिए जो आपका इन्तिज़ार कर रहा है , उस भारी बोझ के लिए जो आपकी खातिर तैयार है । उठ जाइए जद्दोजेहद और मशक्कत के लिए , थकन और मेहनत के लिए , उठ जाइए कि अब नींद और राहत का वक़्त गुज़र चुका ।
 अब आज से लगातार बेदारी है और लम्बा और मशक्कत भरा जिहाद है , उठ जाइए , और इस काम के लिए मुस्तैद और तैयार हो जाइए । यह बड़ा भारी और रौबदार कलिमा है । उसने नबी करीम मोहम्मद को पुरसुकून घर , गर्म आगोश और नर्म बिस्तर से खींच कर तीखे तूफानों और तेज़ झक्कड़ों के दर्मियान अथाह समुद्र में फेंक दिया और लोगों के ज़मीर ( अन्तरात्मा ) और जिंदगी की हक़ीक़तों की कशाकश के मंजधार में ला खड़ा किया । फिर मोहम्मद  उठ गए और बीस साल से ज़्यादा मुद्दत तक उठे रहे ।
     सुख - वैभव को त्याग दिया , ज़िंदगी अपनेलिए अपने घरवालों के लिए न रही । आप उठे तो उठे ही रहे । काम अल्लाह की ओर बुलाना था । आपने यह कमरतोड़ भारी बोझ अपने कंधे पर किसी दबाव के बिन उठा लिया । यह बोझ था इस धरती पर बड़ी अमानत का बोझ . सारी मानवता का बोझ , सारे अक़ीदे का बोझ और विभिन्न मैदानों में जिहाद और संघर्ष का बोझ । आपने बीस साल से ज़्यादा दिनों तक लगातार हर मोर्चे पर फैले संघर्ष में जीवन बिताया । इस पूरी मुद्दत में , यानी जब से आपने वह भारी आसमानी आवाज़ सुनी और यह बहुत बड़ी ज़िम्मेदारी पाई , आपको एक हालत दूसरी हालत से गाफ़िल न कर सकी । अल्लाह आपको हमारी तरफ़ से और सारी मानवता की तरफ़ से बेहतरीन बदला दे ।
     आगे के पृष्ठ अल्लाह के मोहम्मद के इसी लम्बे और मशक्क़त भरे जिहाद का एक छोटा - सा खाका ( प्रारूप ) है । आयत की क़िस्में अब हम क्रम से तनिक हट कर यानी रिसालत व नबूवत की मुबारक जिंदगी का विवरण शुरू करने से पहले आयत की किस्मों का उल्लेख करना चाहते हैं , क्योंकि यह रिवायत का स्रोत और दावत की कुमक है ।
    अल्लामा इब्ने कय्यिम ने आयत की नीचे लिखी श्रेणियों का उल्लेख किया है
1 . सच्चा सपना इसी से मोहम्मद के पास आयत की शुरूआत हुई ।
2 . फ़रिश्ता आपको दिखाई दिए बिना आपके दिल में बात डाल देता था , जैसे मोहम्मद का कहना है
      रूहुल कुद्स ( जिबील ) ने मेरे दिल में यह बात फूंकी कि कोई नफ़्स ( जीव ) मर नहीं सकता , यहां तक कि अपनी रोजी पूरी कर ले , पस अल्लाह से डरो और तलब में अच्छाई अपनाओ और रोजी में विलम्ब तम्हें इस बात पर तैयार न करे कि तुम उसे अल्लाह की नाफरमानी के ज़रिए खोजो , क्योंकि अल्लाह के पास जो कुछ है , वह उसके आज्ञापालन के बिना हासिल नहीं किया जा सकता ।
 3 . फ़रिश्ता मोहम्मद के लिए आदमी का रूप धारण करके आपको सम्बोधित करता , फिर जो कुछ वह कहता , उसे आप याद कर लेते । ऐसी स्थिति में कभी - कभी सहाबा भी फ़रिश्ते को देखते थे ।
4 . आपके पास वा घंटी के टनटनाने की तरह आती थी । वहा की यह सबसे भारी शक्ल होती थी । इस शक्ल में फ़रिश्ता आपसे मिलता था और आयत आती थी तो कड़े जाड़े के जमाने में भी आपके माथे से पसीना फूट पड़ता था और आप ऊंटनी पर सवार होते तो वह ज़मीन पर बैठ जाती थी । एक बार इस तरह आयत आई कि आपकी जांघ हज़रत जैद बिन साबित रजि० की जांघ पर थी , तो उन पर इतना बड़ा बोझ पड़ा कि मालूम होता था जांघ कुचल जाएगी ।
5 . आप फ़रिश्ते को उसकी असली और पैदाइशी शक्ल में देखते थे और इसी हालत में वह अल्लाह की मंशा के मुताबिक़ आपकी ओर आयत करता था । यह शक्ल आपके साथ दो बार पेश आई थी , जिसका उल्लेख अल्लाह ने सूरः नज्म में किया है ।
6 . वह आयत , जो आप पर मेराज की रात में नमाज़ के फर्ज होने के सिलसिले में अल्लाह ने उस वक़्त फ़रमाई , जब आप आसमानों के ऊपर थे ।
7 . फ़रिश्ते के माध्यम के बिना अल्लाह की आपसे सीधी बातचीत , जैसे अल्लाह ने मसा से की थी : वहा की यह शक्ल मसा अलैहिस्सलाम के लिए कुरआन से क़तई तौर पर साबित है , लेकिन मोहम्मद के लिए इसका सबूत ( कुरआन के बजाए ) मेराज की हदीस में है । कुछ लोगों ने एक आठवीं शक्ल भी मानी है यानी अल्लाह से आमने - सामने बिना पर्दे के बात करते थे,  लेकिन यह एक ऐसी शक्ल है जिसके बारे में पहले के लोगों से लेकर आज तक के लोगों में मतभेद चला आया है ।

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