अरब के नगरों में रहने वालों का तरीक़ा था कि वे अपने बच्चों को नगर के रोगों से दूर रखने के लिए दूध पिलाने वाली बदवी औरतों के हवाले कर दिया करते थे , ताकि उनके देह ताक़तवर और अंग मज़बूत हों और अपने पालने ही से शुद्ध और ठोस अरबी भाषा सीख सकें ।
इसी रिवाज के मुताबिक़ अब्दुल मुत्तलिब नदूधापलाने वालो दाई खोजी और मोहम्मद को हज़रत हलीमा बिन्त अबी ज्वैब के हवाले किया ।
यह क़बीला बनी साद बिन बिक्र की एक महिला थीं । इनके शौहर का नाम हारिस बिन अब्दुल उज्ज़ा और उपनाम अबू कबशा था और वह भी क़बीला बनू साद से ताल्लुक रखते थे । हारिस की औलाद के नाम ये हैं जो दूध पिलाने की वजह से मोहम्मद के भाई - बहन थे अब्दुल्लाह , अनीसा , हुज़ाफ़ा या जुज़ामा , इन्हीं की उपाधि शैमा थी और इसी नाम से वह ज़्यादा मशहूर हुई । वह मोहम्मद को गोद खिलाया करती थीं । इनके अलावा अबू सुफ़ियान बिन हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब जो मोहम्मद के चचेरे भाई थे , वह भी हज़रत हलीमा के वास्ते से उसके दूध शरीक भाई थे । आपके चचा हज़रत हमज़ा बिन अब्दुल मुत्तलिब भी दूध पिलाने के लिए बनू साद की एक औरत के हवाले किए गए थे । उस औरत ने भी एक दिन जब मोहम्मद हज़रत हलीमा के पास थे , आपको दूध पिला दिया ।
इस तरह आप और हज़रत हमज़ा दोहरे दूध शरीक भाई हो गए , एक सुवैबा के ताल्लुक़ से और दूसरे बनू साद की उस औरत के ताल्लुक से ।
विवरण उन्हीं के मुख से सुनिए ।
इने इस्हाक़ कहते हैं कि हज़रत हलीमा बयान किया करती थी कि वह अपने शौहर के साथ अपना एक छोटा सा दूध पीता बच्चा लेकर बनी साद की कछ औरतों के काफिले में अपने नगर से बाहर दूध पीने वाले बच्चों की खोज में निकलीं । ये भुखमरी के दिन थे और अकाल ने कुछ बाकी न छोड़ा था । मैं अपनी एक सफ़ेद गधी पर सवार थी और हमारे पास एक ऊंटनी थी , लेकिन , खुदा की क़सम ! उससे एक बूंद दूध न निकलता था । इधर भूख से बच्चा इतना बिलखता था कि हम रात भर सो नहीं सकते थे , न मेरे सीने में बच्चे के लिए कछ था . न ऊंटनी उसका भोजन दे सकती थी . बस हम वर्षा और समद्धि की आस लगाए बैठे थे । मैं अपनी गधी पर सवार होकर चली तो वह कमज़ोरी और दुबलेपन की वजह से इतनी सुस्त रफ़्तार निकली कि पूरा काफ़िला तंग आ गया । खैर , हम किसी न किसी तरह दूध पीने वाले बच्चों की खोज में मक्का पहंच गए । फिर हम में से कोई औरत ऐसी नहीं थी , जिसके सामने मोहम्मद को पेश न किया गया हो , पर जब उसे बताया जाता कि आप यतीम हैं , तो वह आपको लेने से इंकार कर देती , क्योंकि हम बच्चे के बाप से दान - दक्षिणा की आशा रखते हैं । हम कहते कि यह तो यतीम हैं , भला इसकी विधवा मां और इसके दादा क्या दे सकते हैं । बस यही वजह थी कि हम आपको लेना नहीं चाहते थे । - इधर जितनी औरतें मेरे साथ आई थीं , सबको कोई न कोई बच्चा मिल गया , सिर्फ मुझ ही को न मिल सका । जब वापसी की बारी आई , तो मैंने अपने शौहर से कहा , ख़ुदा की क़सम ! मुझे अच्छा नहीं लगता कि मेरी सारी सहेलियां तो बच्चे ले - लेकर जाएं और अकेली मैं कोई बच्चा लिए बिना वापस जाऊं । मैं जाकर उसी यतीम बच्चे को लिए लेती हूं । शौहर ने कहा , कोई हरज नहीं । मुम्किन है अल्लाह हमारे लिए इसी में बकरत दे । इसके बाद मैंने जाकर बच्चा ले लिया और सिर्फ इस वजह से ले लिया कि कोई और बच्चा न मिल सका । हज़रत हलीमा कहती हैं कि जब मैं बच्चे को लेकर अपने डेरे पर वापस आई और उसे अपनी गोद में रखा , तो उसने जितना चाहा , दोनों सीने दूध के साथ उस पर उमंड पड़े और उसने पेट भर कर पिया । उसके साथ उसके भाई ने भी पेट भर कर पिया , दोनों सो गये , हालांकि इससे पहले हम अपने बच्चे के साथ सो नहीं सकते थे । इधर मेरे शौहर ऊंटनी दूहने गए , तो देखा कि उसका थन दूध से भरा हुआ है । उन्होंने इतना दूध दहा कि हम दोनों ने खूब जी भर कर पिया और बड़े आराम से रात गुज़री । इनका बयान है कि सुबह हुई तो मेरे शौहर ने कहा , हलीमा ! खुदा की क़सम ! तुमने एक बरकत वाली रूह हासिल की है । मैंने कहा , मुझे भी यही उम्मीद है । हलीमा कहती है कि इसके बाद हमारा काफिला आगे बढ़ा । मैं अपनी उसी कमज़ोर गधी पर सवार हई और उस बच्चे को भी अपने साथ लिया , लेकिन अब वही गधी खदा की क़सम ! पूरे काफिले को काट कर इस तरह आगे निकल गई कि कोई गधा उसका साथ न पकड़ सका , यहां तक कि मेरी सहेलियां मुझसे कहने लगी ' ओ अबू जुवैब की बेटी ! अरे यह क्या ? तनिक हम पर मेहरबानी कर ! आख़िर यह तेरी वही गधी तो है , जिस पर तू सवार होकर आई थी । ' मैं कहती , ' हां , हां , खुदा की क़सम ! यह वही है । ' वे कहती , ' इसका यक़ीनन कोई खास मामला है । ' फिर हम बनू साद में अपने घरों को आ गए । मुझे मालूम नहीं कि अल्लाह की धरती का कोई भाग हमारे इलाके से ज़्यादा भुखमरी का शिकार था , लेकिन हमारी वापसी के बाद मेरी बकरियां चरने जाती तो पेट भरी हुई और दूध से भरपूर वापस आता । हम दूहत आर पति , जबकि किसी और व्यक्ति को दूध की एक बूंद भी नसीब न होती । इनके जानवरों के थनों में दूध सिरे से रहता ही न था , यहां तक कि हमारी क़ौम के लोग अपने चरवाहों से कहते कि भाग्यहीनो ! जानवर वहीं चराने ले जाया करो , जहां अबू जुवैब की बेटी का चरवाहा ले जाया करता है लेकिन तब भी उनकी बकरियां भूखी वापस आती । उनके अन्दर एक बूंद दूध न रहता , जबकि मेरी बकरियां पेट भरी और दूध से भरपूर वापस आतीं ।
इस तरह हम अल्लाह की ओर से बराबर बढ़ोत्तरी और भलाई देखते रहे , यहां तक कि इस बच्चे के दो साल पूरे हो गए और मैंने दूध छुड़ा दिया । यह बच्चा दूसरे बच्चों के मुकाबले में इस तरह बढ़ रहा था कि दो साल पूरे होते - होते वह कड़ा और गठीला हो गया । इसके बाद हम इस बच्चे को उसकी मां के पास ले गए । लेकिन हम उसकी जो बरकत देखते आए थे , उसकी वजह से हमारी बहुत बड़ी ख्वाहिश थी कि वह हमारे पास रहे , इसलिए हमने उसकी मां से बातचीत की । मैंने कहा , क्यों न आप मेरे बच्चे को मेरे पास ही रहने दें कि ज़रा मज़बूत हो जाए , क्योंकि मुझे उसके बारे में मक्का की महामारी का खतरा है । ग़रज़ हमारे बराबर आग्रह पर बच्चा उन्होंने हमें वापस दे दिया ।
No comments:
Post a Comment