Tuesday, 8 October 2019

हिलफुल फुजूल

इस लड़ाई के बाद इसी हुर्मत वाले महीने ज़ीक़ादा में हिलफुल फुजूल पेश आई । कुरैश के कुछ कबीले यानी बनी हाशिम , बनी मुतलिब , बनी असद बिन अब्दुल उज्जा , बनी जोहरा बिन किलाब और बनी तैम बिन मर्रा ने इसकी व्यवस्था की ।
   ये लोग अब्दुल्लाह बिन जुदआन तैमी के मकान पर जमा हुए क्योंकि वह उम्र और बुजूर्गी में सबसे बड़ा था - और आपस में समझौता किया कि मक्का में जो भी मजलूम नज़र आएगा , चाहे मक्के का रहने वाला हो या कहीं और का , ये सब उसकी सहायता और समर्थन में उठ खड़े होंगे और उसका हक़ दिलाकर रहेंगे । इस सभा में मोहम्मद  भी तशरीफ़ फ़रमाते थे और बाद में पैग़म्बर बनने के बाद भी फरमाया करते थे , में अब्दुल्लाह बिन जुदआन के मकान पर एक ऐसे समझौते में शरीक था कि मुझे इसके बदले में लाल ऊंट भी पसन्द नहीं और अगर इस्लाम ( के दौर ) में इस समझौते के लिए मुझे बुलाया जाता तो मैं पूरा साथ देता ।
    इस समझौते की भावना पक्षपात की तह से उठने वाली अज्ञानतापूर्ण तंगनज़री के प्रतिकूल थी । इस समझौते की वजह यह बताई जाती है कि जुबैद का एक आदमी सामान लेकर मक्का आया और आस बिन वाइल ने उससे सामान खरीदा , लेकिन उसका हक़ रोक लिया । उसने मित्र क़बीले अब्दुद्दार , मजूम , जम्ह , सम और अदी से मदद की दरख्वास्त की , लेकिन किसी ने तवज्जोह न दी । इसके बाद उसने अबू कुबैस पर्वत पर चढ़ कर ऊंची आवाज़ से कुछ पद पढ़े , जिनमें अपनी मज्लूमियत की दास्तान बयान की थी । इस पर जुबैर बिन अब्दुल मुत्तलिब ने दौड़ - धूप की और कहा कि यह व्यक्ति बे - यार व मददगार क्यों है ? इनकी कोशिश से उपरोक्त क़बीले जमा हो गये । पहले समझौता किया और फिर आस बिन वाइल से उस जुबैदी का हक़ दिलाया 

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