इस तरह मोहम्मद दूध पिलाने की मुद्दत ख़त्म होने के बाद भी बनू साद ही में रहे , यहां तक कि जन्म के चौथे या पांचवें साल मुबारक सीना चाक किए जाने की घटना घटी ।
इसका पूरा विवरण हज़रत अनस रज़ियल्लाहु अन्हु की रिवायत में मिलता है , जो सहीह मुस्लिम में अंकित है कि मोहम्मद के पास हज़रत जिबील अलैहिस्सलाम तशरीफ़ लाए । आप बच्चों के साथ खेल रहे थे । हज़रत जिबील ने आपको पकड़ कर पटका और सीना चाक करके दिल निकाला , फिर दिल से एक लोथडा निकाल कर फरमाया , यह तमसे शैतान का हिस्सा है , फिर दिल को एक तश्त में ज़मज़म के पानी से धोया और फिर उसे जोड़ कर उसकी जगह लौटा दिया , इधर बच्चे दौड़ कर आपकी मां अर्थात दाई के पास पहुंचे और कहने लगे , मुहम्मद क़त्ल कर दिया गया , उनके घर के लोग झट - पट पहुंचे , देखा तो आपका रंग उतरा हुआ था (उसने सपना देखा था) । मां की गोद में इस घटना के बाद हलीमा को खतरा महसूस हुआ और उन्होंने आपको आपकी मां के हवाले कर दिया, इसलिए आप छ : साल की उम्र तक मां ही की गोद में पलते रहे ।
उधर हज़रत आमिना का इरादा हुआ कि वह अपने मृत पति की याद में यसरिब जाकर उनकी कब की जियारत करें , इसलिए वह अपने यतीम बच्चे मुहम्मद, अपनी सेविका उम्मे ऐमन और अपने गार्जियन अब्दुल मुत्तलिब के साथ कोई पांच सौ किलोमीटर की दूरी तै करके मदीना तशरीफ़ ले गई और वहां एक महीने तक ठहर कर वापस हुई , लेकिन अभी रास्ते ही में थीं कि बीमारी ने आ लिया । फिर यह बीमारी तेज़ी अख्तियार कर गई , यहां तक कि मक्का और मदीना के बीच अबवा नामी स्थान पर पहुंच कर वफ़ात पा गई ।
दादा की निगरानी में बूढ़े अब्दुल मुत्तलिब अपने पोते को लेकर मक्का पहुंचे । उनका हृदय अपने इस यतीम पोते के प्रति प्रेम व स्नेह से ओत - प्रोत था , इसलिए भी ऐसा हुआ कि अब उसे एक नयी चोट लगी थी , जिसने पुराने घाव कुरेद दिए थे । अब्दुल मुत्तलिब अपने पोते के लिए इतने नम्र स्वभाव थे कि अपने बेटों के लिए इतने न रहे होंगे ।
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