
जब मुश्रिक अपनी चाल में सफल न हो सके और हब्शा के मुहाजिरों को वापस लाने में मुंह की खानी पड़ी तो आपा खो बैठे और लगता था कि मारे गुस्से के फट पड़ेंगे , चुनांचे उनकी दरिन्दगी ( पश्विकता ) और बढ़ गई उनका हाथ अल्लाह के रसूल मोहम्मदतक बढ़ने लगा और उनकी . गतिविधियों से यह महसूस होने लगा कि वह आपका अन्त करना चाहते हैं , ताकि उनके विचार से जिस फ़िले ने उनकी नींद हराम कर रखी है , उसे जड़ से उखाड़ फेंका जाए । जहां तक मुसलमानों का ताल्लुक़ है तो अब मक्का में जो मुसलमान बचे - खुचे रह गए थे , वह बहुत ही थोड़े थे और फिर प्रतिष्ठित लोग थे , या किसी बड़े आदमी की पनाह में थे । इसके साथ ही वे अपने इस्लाम को छिपाए हुए भी थे और यथासंभव सरकशों और ज़ालिमों की निगाहों से दूर रहते थे , लेकिन इस सावधानी और बचाव के बावजूद वे जुल्म व जौर और पीड़ा के शिकार बनने से पूरी तरह न बच सके । जहां तक अल्लाह के रसूल मोहम्मदका ताल्लुक है तो आप ज़ालिमों की निगाहों के सामने नमाज़ पढ़ते और अल्लाह की इबादत करते थे और खुफ़िया और खुल्लम खुल्ला दोनों तरह अल्लाह के दीन की दावत देते थे । इससे आपको न कोई रोकने वाली चीज़ रोक सकती थी और न मोड़ने वाली । चीज़ मोड़ सकती थी , क्योंकि यह अल्लाह की रिसालत के प्रचार का एक हिस्सा था और इस पर आप उस वक़्त से अमल कर रहे थे जब से अल्लाह का यह हक्म आया था , ' आपको जो हुक्म दिया जाता है , उसे खुल्लम खुल्ला कीजिए । और मुश्किों से मुंह फेरे रखिए । ' इसलिए ऐसी स्थिति में मुश्किों के लिए संभव था कि आपसे जब चाहें छेड़ - छाड़ कर बैठे । प्रत्यक्ष में कोई चीज़ न थी जो उनके और उनके इरादों के दर्मियान रोक बन सकती । अगर कुछ था तो वह मोहम्मदका अपना निजी रौब व दबदबा था या अबू तालिब का जिम्मा व एहतराम था या इस बात का डर था कि अगर उन्होंने कोई ग़लत हरकत की तो अंजाम अच्छा न होगा और सारे बनू हाशिम उनके खिलाफ डट जाएंगे । मगर उनके दिलों में इन सारी बातों का जैसा असर होना चाहिए था , वह असर बाकी न रह गया था और जब से उन्हें यह महसूस हो चला था कि आपकी दावत के सामने उनकी दीनी चौधराहट और मूर्ति पूजा - व्यवस्था टूट - फूट का शिकार हुआ चाहती है , तब से उन्होंने आपसे ओछी हरकतें करने शुरू कर दी थीं । इस संबंध में जो घटनाएं हदीस व सीरत की किताबों में रिवायत की गई हैं और जिनकी गवाही हालात भी देते हैं , वे इसी दौर में घटीं । उनके एक दो नमूने ये हैं कि एक दिन अबू लव का बेटा उतैबा अल्लाह के रसूल मोहम्मदके पास आया और बोला ' मैं ' वन्नज्मि इजा हवा ' और ' सुम - म दना फ़ - त - दल्ला ' के साथ कुफ करता इसके बाद वह आपको पीड़ा पहुंचाने पर उतर आया । आपका करता फाड़ दिया और आपके चेहरे पर थूक दिया । अगरचे थूक आप पर न पड़ा । इसी मौके पर मोहम्मदने बद - दुआ की कि ऐ । अल्लाह ! इस पर अपने कुत्तों में से कोई कुत्ता मुसल्लत कर दे । मोहम्मदकी यह बद - दुआ कुबूल हुई । चुनांचे एक बार उतैबा कुरैश के कुछ लोगों के साथ सफर में गया । जब उन्होंने शाम देश के नगर जरका में पडाव डाला . तो रात के वक़्त शेर ने उनका चक्कर लगाया । उतैबा ने देखते ही कहा , ' हाय ! मेरी तबाही ! यह अल्लाह की क़सम ! मुझे खा जाएगा , जैसा कि मुहम्मद मोहम्मदने मुझे बद - दुआ दी है । देखो , मैं शाम देश में हं , लेकिन उसने मक्का में रहते हुए मुझे मार डाला । सावधानी और रक्षा की दृष्टि से लोगों ने उतैबा को अपने और जानवरों के को के हो देव सुलाया लेकिन खत को शेर सबको मंदता हुआ सोचा उसेवा के पास पहुंचा और पकड़ कर जिन्द कर डाला । एक बार उडवा बिन अबी मरेड ने अल्लाह के रसूल मोहम्मदकी गरदन सब्दे की हालत में इस जोर से सटी कि मालूम होता र दोनों आंखें निकल आएंगी । इब्ने इस्हाक को एक लम्बी रिवायत से भी कुरैश के दुष्टों के इस इरादे पर रोशनी पड़ती है कि वे नबी सल्ल . के खात्मे के चक्कर में दे चुनांचे इस रिवायत में बवान किया गया है कि एक बार अबू बहल ने कहा कुरैशी भाइयो ! आप देखते हैं कि मुहम्मद हमारे धर्म में दोष निकालने हमारे पुरखों को बुरा - भला कहने हमारी सूझ - बूझ को घटाने और हमारे उपास्यों का अपमान करने से रुकते नहीं , इसलिए मैं अल्लाह से प्रवा कर रहा हूँ कि एक बहुत भारी और मुश्किल से उठने वाला पत्थर लेकर बैठगा और जब वह सज्दा करेगा तो उसी पत्थर से उसका सर कुचल दूंगा । अब इसके बाद चाहे तुम लोग मुझको असहाय छोड़ दो , चाहे मेरी रक्षा को और बम् अब्द मुनाफ भी इसके बाद जो चाहें मे । लोगों ने कहा नहीं बुदा की कसम ! हम तुम्हें कभी किसी मामले में असहाय नहीं छोड़ सकते । तुम जो करना चाहते हो कर गुजरो । ' सुबह हुई तो अबू बहल वैसा ही एक पत्थर लेकर अल्लाह के रसूत मोहम्मदके इन्तजार में बैठ गया । अल्लाह के रसूल मोहम्मदपहले ही की तरह तशरीफ लाये और खड़े होकर नमाज पढ़ने लगे । कुरैश भी अपनी - अपनी मज्लिसों ( बैठकों की जगहों ) में आ चुके थे और अबू जहल की कार्रवाई देखने के इन्तिजार में थे । जब अल्लाह के रसूल मोहम्मदसद्दे में तशरीफ ले गए तो अब बहल ने पत्थर उठाया , फिर आपकी ओर बढ़ा लेकिन जब करीब पहुंचा तो पराजित व्यक्ति की तरह वापस भागा । उसका रंग उड़ रहा था और वह इतमा रौब खा गया था कि उसके दोनों हब पत्थर पर चिपककर रह गए थे । वह बड़ी मुश्किल से हाथ से पत्थर अलग कर सका । जहां सब कुरैश के दूसरे गुंडों का ताल्लुक है तो उनके दिलों में भी बीसल्लल्लाह अलैहि व सल्लम के खात्मे का ख्याल बराबर पक रहा था । इसलिए हजरत अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रजि० से इब्ने इस्हाक़ ने उनका यह बयान नक़ल किया है कि एक बार मुश्रिक हतीम में जमा थे । मैं भी मौजूद था । मुश्किों ने अल्लाह के रसूल सल्ल० का ज़िक्र छेड़ा और कहने लगे ' इस व्यक्ति के मामले में हमने जैसा सब किया है , उसकी मिसाल नहीं । सच तो यह है कि हमने इसके मामले में बहुत ही बड़ी बात पर सब किया है । ' यह बातचीत चल ही रही थी कि अल्लाह के रसूल मोहम्मदसामने आ गए । आपने आते ही पहले हजरे अस्वद को चूमा , फिर तवाफ़ करते हुए मुश्किों के पास से गुज़रे । उन्होंने कुछ कहकर लान - तान किया , जिसका प्रभाव मैने आपके चेहरे पर देखा । इसके बाद आप तीसरी बार गुज़रे , तो मुश्किों ने फिर आप पर लान - तान की । अब की बार आप ठहर गए और फरमाया ' कुरैश के लोगो ! सुन रहे हो ? उस जात की कसम , जिसके हाथ में मेरी जान है , मैं तुम्हारे पास ज़िम्ह लेकर आया हूं । ' आपके इस इर्शाद ने लोगों को पकड़ लिया । ( वे ऐसा चुप हुए कि ) मानो हर व्यक्ति के सर पर चिड़िया है . यहां तक कि जो आप पर सबसे ज्यादा सख्त था , वह भी बेहतर से बेहतर शब्द जो पा सकता था , उसके द्वारा आपसे रहमत तलब करने लगा , कहता ' अबुल क़ासिम ! वापस जाइए । खुदा की क़सम ! आप कभी नादान न थे । दूसरे दिन कुरैश फिर इसी तरह जमा होकर आपका ज़िक्र कर रहे थे कि आप सामने आ गए । देखते ही सब इकट्ठा होकर एक आदमी की तरह आप पर पिल पड़े और आपको घेर लिया । फिर मैंने एक आदमी को देखा कि उसने गले के पास से आपकी चादर पकड़ ली । ( और बल देने लगा ) अबूबक्र रजि० आपके बचाव में लग गए । वह रोते जाते थे और कहते जाते थे ' क्या तुम लोग एक व्यक्ति को इसलिए क़त्ल कर रहे हो कि वह कहता है , मेरा रब अल्लाह है ? ' इसके बाद वे लोग आपको छोड़कर पलट गये । अब्दुल्लाह बिन अम्र बिन आस रजि० कहते हैं कि यह सबसे बड़ी पीड़ा पहुंचाने वाली बात थी , जो मैंने कुरैश को कभी करते हुए देखी । ( संक्षिप्त करके लिखा गया ) सहीह बुखारी में हज़रत उर्वः बिन जुबैर रजि० से उनका बयान रिवायत । किया गया है कि मैंने अब्दुल्लाह बिन अन बिन आस रजि० से सवाल किया कि मुशिकों ने मोहम्मदके साथ जो सबसे बुरी बद - सुलूकी की थी , आप मुझे उसे विस्तार में बताइए । उन्होंने कहा कि नबी सल्ल० खाना काबा के करीब हतीम में नमाज़ पढ़ रहे थे कि उनबा बिन अबी मऐत आ गया । उसने आते ही अपना कपड़ा आपकी गरदन में डाल कर बड़ी सख्ती के साथ आपका गला घोंटा । इतने में अबूबक्र आ पहुंचे और उन्होंने उसके दोनों कंधे पकड़ कर धक्का दिया और उसे नबी सल्ल० से दूर करते हुए फरमाया , ' क्या तुम लोग एक आदमी को इसलिए क़त्ल कर रहे हो कि वह कहता है , मेरा रब अल्लाह है । " हज़रत अस्मा रजि० की रिवायत में कुछ और विस्तार है कि हज़रत अबूबक्र रजि० के पास यह चीख पहुंची कि अपने साथी को बचाओ । वह झट हमारे पास से निकले । उनके सर पर चार चोटियां थीं । वह यह कहते हुए गए कि ' क्या तुम लोग एक व्यक्ति को केवल इसलिए क़त्ल कर रहे हो कि वह कहता है मेरा रब अल्लाह है । ' मुश्कि नबी सल्ल० को छोड़कर अबूबक्र रजि० पर पिल पड़े । वह वापस आए तो हालत यह थी कि हम उनकी चोटियों का जो बाल भी छूते थे , वह हमारी ( चुटकी ) के साथ आता था ।
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