Wednesday, 9 October 2019

हब्शा की दूसरी हिजरत

इसके बाद उन मुहाजिरों पर खास तौर पर और मुसलमानों पर आम तौर पर कुरैश का अन्याय और अत्याचार और बढ़ गया और उनके परिवार वालों ने उन्हें खूब सताया , क्योंकि कुरैश को उनके साथ नजाशी के सद्व्यवहार की जो खबर मिली थी , उस पर वे बहत रुष्ट थे । मजबूर होकर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाह अलैहि व सल्लम ने सहाबा किराम रजि० को फिर हब्शा की हिजरत का मश्विरा दिया , लेकिन यह दूसरी हिजरत पहली हिजरत के मुकाबले में ज़्यादा परेशानियों और कठिनाइयों से भरी हुई थी , क्योंकि इस बार कुरैश पहले ही से चौकन्ना थे और ऐसी किसी कोशिश को विफल करने का संकल्प किए हुए थे , लेकिन मुसलमान उनसे कहीं ज्यादा मस्तैद साबित हुए और अल्लाह ने उनके लिए सफ़र आसान बना दिया , चुनांचे वे कुरैश की पकड़ में आने से पहले ही हब्श के बादशाह के पास पहुंच गए । इस बार कुल 82 या 83 मर्दो ने हिजरत की । ( हज़रत अम्मार की हिजरत में मतभेद है ) और अठारह या उन्नीस औरतों ने । अल्लामा मंसरपरी ने पूरे विश्वास के साथ औरतों की तायदाद अठारह लिखी है । ' हब्शा के मुहाजिरों के विरुद्ध कुरैश का षड्यंत्र मुश्किों को बड़ा दुख था कि मुसलमान अपनी जान और अपना दीन बचाकर एक शांतिपूर्ण जगह पहुंच गए हैं , इसलिए उन्होंने अम्र बिन आस और अब्दुल्लाह बिन रबीआ को , जो गहरी सूझ - बूझ के मालिक थे और अभी मुसलमान नहीं हुए थे , दूत बनाकर एक अहम मुहिम पर भेजने को सोचा और इन दोनों को नजाशी और बितरीकों ( दरबारियों ) की सेवा में भेंट और उपहार देने के लिए हब्शा रवाना किया । इन दोनों ने पहले हब्शा पहंचकर बितरीकों को उपहार दिए , फिर उन्हें अपनी वे दलीलें बताई , जिनको आधार बनाकर वे मुसलमानों को हब्शा से निकलवाना चाहते थे । जब बितरीकों ने इसे मान लिया कि वे नजाशी दूरी पर रह गया तो सही स्थिति मालूम हुई । इसके बाद कुछ लोग तो सीधे हब्शा पलट गये और कुछ लोग छिप - छिपाकर या कुरैश के किसी आदमी की शरण लेकर मक्के में दाखिल हुए । हब्शा की दूसरी हिजरत इसके बाद उन मुहाजिरों पर खास तौर पर और मुसलमानों पर आम तौर पर कुरैश का अन्याय और अत्याचार और बढ़ गया और उनके परिवार वालों ने उन्हें खूब सताया , क्योंकि कुरैश को उनके साथ नजाशी के सद्व्यवहार की जो खबर मिली थी , उस पर वे बहत रुष्ट थे । मजबूर होकर अल्लाह के रसूल सल्लल्लाह अलैहि व सल्लम ने सहाबा किराम रजि० को फिर हब्शा की हिजरत का मश्विरा दिया , लेकिन यह दूसरी हिजरत पहली हिजरत के मुकाबले में ज़्यादा परेशानियों और कठिनाइयों से भरी हुई थी , क्योंकि इस बार कुरैश पहले ही से चौकन्ना थे और ऐसी किसी कोशिश को विफल करने का संकल्प किए हुए थे , लेकिन मुसलमान उनसे कहीं ज्यादा मस्तैद साबित हुए और अल्लाह ने उनके लिए सफ़र आसान बना दिया , चुनांचे वे कुरैश की पकड़ में आने से पहले ही हब्श के बादशाह के पास पहुंच गए । इस बार कुल 82 या 83 मर्दो ने हिजरत की । ( हज़रत अम्मार की हिजरत में मतभेद है ) और अठारह या उन्नीस औरतों ने । अल्लामा मंसरपरी ने पूरे विश्वास के साथ औरतों की तायदाद अठारह लिखी है ।

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