Monday, 7 October 2019

सफा पहाड़ी पर मोहम्मद का चिल्लाना

सफ़ा पहाड़ी पर जब मोहम्मद ने अच्छी तरह इत्मीनान कर लिया कि अल्लाह के दीन के प्रचार के समय अबू तालिब उनका समर्थन करेंगे , तो एक दिन आप सफा पहाड़ी पर तशरीफ़ ले गए और सबसे ऊंचे पत्थर पर चढ़कर यह आवाज़ लगाई , या सबाहा ( हाय सुबह ) ( अरबों का चलन था कि दुश्मन के हमले या किसी संगीन खतरे से सूचित करने के लिए किसी ऊंची जगह पर चढ़कर इन्हीं शब्दों से पुकारते थे । )
   इसके बाद आपने कुरैश की एक - एक शाख़ और एक - एक ख़ानदान को आवाज़ लगाई : ऐ बनी फह ! ऐ बनी अदी ! ऐ बनी फ्लां ! और ऐ बनी फ्ला ! ऐ बनी अब्दे मुनाफ़ ! ऐ बनी अब्दुल मुत्तलिब ! जब लोगों ने आवाज़ सनी तो कहा . कौन पकार रहा है ? जवाब मिला . मुहम्मद हैं । इस पर लोग तेज़ी से आए । अगर कोई खुद न आ सका , तो अपना आदमी भेज दिया कि देखे क्या बात है ? यो कुरैश के लोग आ गए , उनमें अबू लव भी था । जब सब जमा हो गए , तो आपने फ़रमाया , यह बताओ , अगर मैं खबर दूं कि उधर इस पहाड़ के दामन में घाटी के अन्दर घोड़सवारों की एक जमाअत है जो तुम पर छापा मारना चाहती है , तो क्या तुम लोग मुझे सच्चा मानोगे ? लोगों ने कहा , हां ! हां ! हमने आप पर कभी झूठ का तजुर्बा नहीं किया है , हमने आप पर सच ही का तजुर्बा किया है ।
     आपने फ़रमाया , अच्छा , तो मैं एक सख्त अज़ाब से पहले तुम्हें खबरदार करने के लिए भेजा गया हूं । मेरी और तुम्हारी मिसाल ऐसे ही है जैसे किसी आदमी ने दुश्मन को देखा , फिर उसने किसी ऊंची जगह पर चढ़कर अपने खानदान वालों पर नज़र डाली तो उसे डर हुआ कि दुश्मन उससे पहले पहुंच जाएगा ,

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