Monday, 7 October 2019

कुरेश कबीले में अबू तालिब का डर



mohammad ke chacha
इस जाती महानता के अलावा आपको अबू तालिब की हिमायत और हिफाजत भी हासिल थी और अब तालिब मक्का के उन गिने - चने लोगों में से थे जो अपनी ज़ाती और इज्तिमाई दोनों हैसियतों से इतने महान थे कि कोई आदमी बड़ी मुशरिकल से हज़रत मुहम्मद को सताने और उन पर हाथ डालने की हिम्मत कर सकता था । इस स्थिति ने करैश को सख्त परेशानी और मश्किल से दोचार कर रखा था जिसका तकाज़ा था कि नापसन्दीदा दायरे में पड़े बगैर इस मुशरिकल से निकलने के लिए संजीदगी से गौर करें । आखिरकार उन्हें यह रास्ता समझ में आया कि सबसे बड़े ज़िम्मेदार अबू तालिब से बात - चीत करें , लेकिन हिक्मत और दानाई के साथ और किसी क़दर चुनौती और खुफ्रिया धमकी लिए हए , ताकि जो बात कही जाए , उसे वे मान लें । करैश का प्रतिनिधिमंडल अबू तालिब की ख़िदमत में इले इस्हाक़ कहते हैं कि कुरैश के कुछ अशराफ़ अबू तालिब के पास गए और बोले , ऐ अबू तालिब ! आपके भतीजे ने हमारे माबूदों ( उपास्यों ) को बरा - भला कहा है । हमारे दीन में कीड़े निकाले हैं , हमारी अक़्लों को मूर्खता का मारा हआ कहा है और हमारे बाप - दादा को गुमराह करार दिया है , इसलिए या तो आप इन्हें इससे रोक दें या हमारे और इनके दर्मियान से हट जाएं , क्योंकि आप भी हमारी ही तरह इनसे अलग दीन पर हैं , हम इनके मामले में आपके लिए भी काफ़ी रहेंगे । इसके जवाब में अबू तालिब ने नर्म बात कही और उदारता का सुबूत दिया । इसलिए  वे वापस चले गए और मोहम्मद  अपने तरीके पर चलते रहे और अल्लाह का दीन फैलाने और उसका प्रचार करने में लगे रहे । अबू तालिब को कुरैश की धमकी _ _ इस फैसले के बाद कुरैश के सरदार अबू तालिब के पास फिर हाज़िर हुए और बोले , अबू तालिब ! आप हमारे अन्दर बड़े बुजुर्ग और मान - सम्मान वाले आदमी हैं । हमने आपसे गुजारिश की थी कि आप अपने भतीजे को रोकिए , लेकिन आपने नहीं रोका । आप याद रखें , हम इसे सहन नहीं कर सकते कि हमारे बाप - दादाओं को गालियां दी जाएं , हमारी अक्ल व समझ को मूर्खता कहा जाए और हमारे माबूदों में ऐब निकाले जाएं , आप रोक दीजए वरना हम आपसे और उनसे ऐसी लड़ाई लड़ेंगे कि एक फरीक़ का सफाया होकर रहेगा । अबू तालिब पर इस जोरदार धमकी का बहुत अधिक प्रभाव हुआ और उन्होंने मोहम्मद को बुलाकर कहा , भतीजे ! तुम्हारी क़ौम के लोग मेरे पास आए थे और ऐसी - ऐसी बातें कह गए हैं । अब मुझ पर और स्वयं अपने आप पर दया करो और इस मामले में मुझ पर इतना बोझ न डालो जो मेरे | वश से बाहर हो । 
    यह सुनकर मोहम्मद  ने समझा कि अब आपके चचा भी आपका साथ छोड़ देंगे और वह भी आपकी मदद से कमजोर पड़ गए हैं , इसलिए फरमाया , चचा जान ! अल्लाह की कसम ! अगर ये लोग मेरे दाहिने हाथ में सूरज और बाएं हाथ में चांद रख दें कि मैं इस काम को इस हद तक पहुंचाए बगैर छोड़ दूं कि या तो अल्लाह इसे ग़ालिब कर दे या मैं इसी राह में फ़ना हो जाऊं , तो मैं नहीं छोड़ सकता । इसके बाद आपकी आंखें आंसुओं से भीग गई । आप रो पड़े और उठ गए । जब वापस होने लगे तो अबू तालिब ने पुकारा और सामने तशरीफ़ लाए तो कहा , भतीजे ! जाओ , जो चाहे करो । खुदा की क़सम ! मैं तुम्हें कभी भी किसी भी वजह से नहीं छोड़ सकता । और ये पद पढ़े ' खुदा की क़सम ! वे लोग तुम्हारे पास अपने जत्थ सहित भी हरगिज़ नहीं पहुंच सकते , यहां तक कि मिट्टी में दफ़न कर दिया जाऊं । तुम अपनी बात खुल्लम खुल्ला कहो । तुम पर कोई पाबंदी नहीं , तुम खुश हो जाओ और तुम्हारी आंखें इससे ठंडी हो जाएं । कुरैश एक बार फिर अबू तालिब के सामने पिछली धमकी के बावजूद जब कुरैश ने देखा कि मोहम्मद  अपना काम किए जा रहे हैं तो उनकी समझ में आ गया कि अबू तालिब मोहम्मद को छोड़ नहीं सकते , बल्कि इस बारे में कुरैश से जुदा होने और उनकी दुश्मनी मोल लेने को तैयार हैं । इसलिए वे लोग वलीद बिन मुग़ीरह के लड़के उमारा को साथ लेकर अबू तालिब के पास पहुंचे और उनसे यों कहा ' ऐ अबू तालिब ! यह कुरैश का सबसे बांका और खूबसूरत नवजवान है । आप इसे ले लें । आप इसे अपना लड़का बना लें , यह आपका होगा और अपने इस भतीजे को हमारे हवाले कर दें , जिसने आपके बाप - दादों का विरोध किया , आपकी कौम का एका बिखेर दिया है और उनकी बुद्धि और सोच को मूर्खता नाम दिया है , हम इसे क़त्ल करेंगे । बस यह एक आदमी के बदले एक आदमी का हिसाब है । अबू तालिब ने कहा , ख़ुदा की क़सम ! कितना बुरा सौदा है , जो लोग मुझसे रहे हो । तुम अपना बेटा देते हो कि मैं उसे खिलाऊं - पिलाऊं , पाल - पोसं और मासे तलब करते हो कि उसे क़त्ल कर दो । खुदा की कसम ! यह नहीं हो सकता । इस पर नौफ़ल बिन अब्द मुनाफ़ का पोता मुतइम बिन अदी बोला , खदा की क़सम ! ऐ अबू तालिब ! तुमसे तुम्हारी क़ौम ने इंसाफ की बात कही है और जो शक्ल तम्हें नागवार है , उससे बचने की कोशिश की है , लेकिन मैं देखता हूँ कि तुम उनकी किसी बात को कुबूल करना ही नहीं चाहते । जवाब में अबू तालिब ने कहा , ख़ुदा की क़सम ! तुम लोगों ने मुझसे इंसाफ़ की बात नहीं कही है । बल्कि तुम भी मेरा साथ छोड़कर मेरे विरोधियों की मदद पर तुले बैठे हो , तो ठीक है , जो चाहो , करो ।

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