3 . अब्दुल्लाह ,
मोहम्मद के पिता इनकी मां का नाम फातमा था और वह अम्र बिन आइज़ बिन इम्रान बिन मजूम बिन यक़ज़ा बिन मुर्रा की बेटी थीं । अब्दुल मुत्तलिब की सन्तान में अब्दुल्लाह सबसे ज़्यादा खूबसूरत , पाक दामन और चहेते थे और ' ज़बीह ' कहलाते थे । ज़बीह कहलाने की वजह यह थी कि जब अब्दुल मुत्तलिब के लडकों की तायदाद पूरी दस हो गई और वे बचाव करने के योग्य हो गये तो अब्दल मत्तलिब ने उन्हें अपनी मन्नत बता दी । सब ने बात मान ली । इसके बाद कहा जाता है कि अब्दुल मुत्तलिब ने उनके दर्मियान कुरआअन्दाजी की तो करआ अब्दल्लाह के नाम निकला ।
वह सबसे प्रिय थे , इसलिए अब्दुल मुत्तलिब ने कहा कि ' ऐ अल्लाह ! वह या सौ ऊंट ? फिर उनके और ऊंटों के दर्मियान करआअन्दाजी की तो कुरआ सौ ऊंटों पर निकल आया । और कहा जाता है कि अब्दल मुत्तलिब ने भाग्य के तीरों पर इन सब के नाम लिखे और हबल के निगरां के हवाले किया । निगरां ने तीरों को गर्दिश देकर कुरआ निकाला , तो अब्दुल्लाह का नाम निकला । अब्दुल मुत्तलिब ने अब्दुल्लाह का हाथ पकड़ा , छुरी ली और जिव्ह करने के लिए खाना काबा के पास ले गये लेकिन कुरैश और खास तौर से अब्दुल्लाह के ननिहाल वाले अर्थात बनू मख्जूम और अब्दुल्लाह के भाई अबू तालिब आड़े आए ।
अब्दुल मुत्तलिब ने कहा , तब मैं अपनी मन्नत का क्या करूं ? उन्होंने मश्विरा दिया कि वह किसी महिला अर्राफ़ा के पास जाकर हल मालूम कर लें । अब्दुल मुत्तलिब अर्राफ़ा के पास गए । उसने कहा कि अब्दुल्लह और दस ऊंटों के दर्मियान कुरआ डालें । अगर अब्दुल्लाह के नाम कुरआ निकले तो दस ऊंट और बढ़ा दें । इस तरह ऊंट बढ़ाते जाएं और कुरआ निकालते जाएं , यहां तक कि अल्लाह राज़ी हो जाए । फिर ऊंटों के नाम कुरआ निकल आए तो उन्हें जिब्ह कर दें । अब्दुल मुत्तलिब ने वापस आकर अब्दुल्लाह और दस ऊंटों के बीच कुरआ डाला , मगर कुरआ अब्दुल्लाह के नाम निकला । इसके बाद वह दस - दस ऊंट बढ़ाते गए और कुरआ डालते गये , मगर कुरआ अब्दुल्लाह के नाम ही निकलता रहा । (रूहानी ताकतों ने भी कोशिश किया था कि मोहम्मद पैदा ना हो) जब सौ ऊंट पूरे हो गये , तो कुरआ ऊंटों के नाम निकला । अब अब्दुल मुत्तलिब ने उन्हें अब्दल्लाह के बदले जिब्ह कर दिया और वहीं छोड़ दिया । किसी इंसान या दरिंदे के लिए कोई रुकावट न थी । इस घटना से पहले कुरैश और अरब में खन बहा ( दियत ) की मात्रा दस ऊंट थी , पर इस घटना के बाद सों कर दी गई । इस्लाम ने भी इस मात्रा को बाक़ी रखा ।
मोहम्मद कहा करता था की मैं दो ज़बीह की सन्तान हूं - एक हज़रत इस्माईल अलैहिस्सलाम और दूसरे आपके पिता अब्दुल्लाह । । अब्दुल मुत्तलिब ने अपने बेटे अब्दुल्लाह की शादी के लिए हज़रत आमना को चुना जो वस्व बिन अब्दे मुनाफ बिन ज़ोहरा बिन किलाब की सुपुत्री थीं और वंश और पद की दृष्टि से कुरैश की उच्चतम महिला मानी जाती थीं । उनके पिता वंश और श्रेष्ठता की दृष्टि से बनू जोहरा के सरदार थे । वह मक्का ही में विदा होकर हज़रत अब्दुल्लाह के पास आई , मगर थोड़े दिनों बाद अब्दुल्लाह को अब्दुल मुत्तलिब ने खजूर लाने के लिए मदीना भेजा और उनका वहीं देहान्त हो गया ।
कुछ सीरत के विशेषज्ञ कहते हैं कि वह व्यापार के लिए शाम देश गए हुए थे । करैश के एक काफिले के साथ वापस आते हए बीमार होकर मदीना उतरे और देहान्त हो गया । नाबग़ा जादी के मकान में दफन किए गए । उस वक़्त उनकी उम्र 25 वर्ष थी । अधिकांश इतिहासकार के अनुसार अभी मोहम्मद पैदा नहीं हुए थे , अलबत्ता कुछ सीरत लिखने वाले कहते हैं कि आपका जन्म उनके देहान्त से दो महीने पहले हो चुका था ।
जब उनके देहान्त की खबर मक्का पहुंची , तो हज़रत आमना ने बड़ा ही दर्द भरा मर्सिया ( शोक गीत ) कहा , जो यह है
' बतहा की गोद हाशिम के बेटे से खाली हो गई । वह चीख - पुकार के दर्मियान एक क़ब में सो गया । उसे मौत ने एक पुकार लगाई और उसने ' हां ' कह दिया । अब मौत ने लोगों में इले हाशिम जैसा कोई इंसान नहीं छोड़ा । ( कितनी हसरत भरी थी ) वह शाम जब लोग उन्हें तख्त पर उठाए ले जा रहे थे । अगर मौत और मौत की घटना ने उनका वजूद खत्म कर दिया है , ( तो उनके चरित्र के चिह्न नहीं मिटाए जा सकते ) वह बड़े दाता और दयालु थे ।
अब्दुल्लाह का छोड़ा हुआ कुल सामान यह था
पांच ऊंट , बकरियों का रेवड़ , एक हब्शी लौंडी जिनका नाम बरकत था और उपनाम उम्मे ऐमन , यही उम्मे ऐमन हैं , जिन्होंने मोहम्मद को गोद में खिलाया था ।
जन्म और पाक जिंदगी के चालीस साल जन्म मोहम्मद मक्का में शाबे बनी हाशिम के अन्दर 9 रबीउल अव्वल सन् 01 आमुल फील ( हाथी का साल ) सोमवार के दिन सबह के वक़्त पैदा हुए । उस वक़्त नौशेरवां के सत्तासीन होने का चालीसवां साल था और 20 या 22 अप्रैल सन् 571 ई० की तारीख थी । अल्लामा मुहम्मद सुलैमान साहब सलमान मन्सूरपुरी रह० और महमूद पाशा फलकी की खोज यही है । इले साद की रिवायत है कि मोहम्मद की मां ने फ़रमाया , जब आपका जन्म हुआ , तो मेरे जिस्म से एक नर निकला , जिससे शाम देश के महल रोशन हो गए ।
इमाम अहमद और दारमी आदि ने हज़रत इरनाज़ बिन सारिया से भी लगभग इसी विषय की एक रिवायत नक़ल फ़रमाई है । कुछ रिवायतों में बताया गया है कि जन्म के समय कुछ घटनाएं नुबूवत का पता देने वाली भी हुईं , अर्थात किसरा के महल के चौदह कंगूरे गिर गए , मजूस का अग्निकुंड ठंडा हो गया । सारा सागर सूख गया और उसके गिरजे ढह गए ।
यह तबरी और बैहक़ी वगैरह की रिवायत है , मगर इसकी सनद के लिए सबूत नहीं मिल सका है और इन क़ौमों की तारीख से भी इसकी कोई गवाही नहीं मिलती , हालांकि इन घटनाओं को लिपिबद्ध किए जाने का मज़बूत तत्त्व मौजूद था ।
जन्म के बाद आपकी मां ने अब्दुल मुत्तलिब के पास पोते की शुभ - सूचना भिजवाई । वह खुश - खुश तशरीफ़ लाए और आपको खाना काबा में ले जाकर अल्लाह से दुआ की और उसका शुक्र अदा किया और आपका नाम मुहम्मद रखा ।
यह नाम अरब में जाना - पहचाना न था । फिर अरब रिवाज के मुताबिक़ सातवें दिन खला किया । आपको आपकी मां के एक सप्ताह बाद सबसे पहले अब लहब की लौंडी सुवैबा ने दूध पिलाया । उस वक़्त उसकी गोद में जो बच्चा था , उसका नाम मसरूह था ।
सुवैबा ने आपसे पहले हज़रत हमजा बिन अब्दुल मुत्तलिब को और आपके बाद अबू सलमा बिन अब्दुल असद मख्मी को भी दूध पिलाया था ।
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