बहरहाल इस आयत के उतरने के बाद मोहम्मद ने पहला काम यह किया कि बनी हाशिम को जमा किया , उनके साथ बनी मुत्तलिब बिन अब्दे मुनाफ की भी एक जमाअत थी , कुल 45 आदमी थे , लेकिन अबू लहब (मोहम्मद का सगा चाचा) ने बात लपक ली और बोला , देखो ये तुम्हारे चचा और चचेरे भाई हैं , बात करो , लेकिन नादानी छोड़ दो और यह समझ लो कि तुम्हारा परिवार सारे अरब से मुकाबले की ताब नहीं रखता और मैं सबसे ज़्यादा हक़दार हूं कि तुम्हें पकड़ लूं । पस तुम्हारे लिए तुम्हारे बाप का परिवार ही काफ़ी है और अगर तुम अपनी बात पर कायम रहे तो यह बहुत आसान होगा कि कुरैश के सारे कबीले तुम पर टूट पड़ें और बाक़ी अरब भी उनकी सहायता करें । फिर मैं नहीं जानता कि कोई व्यक्ति अपने बाप के परिवार के लिए तुमसे बढ़कर तबाही और बर्बादी की वजह होगा ।
इस पर मोहम्मद ने चणी साध ली और उस सभा में कोई बात न की । इसके बाद आपने उन्हें दोबारा जमा किया और इर्शाद फरमाया , तमाम तारीफें अल्लाह के लिए हैं । मैं उसका गुणगान करता हूं और उससे मदद चाहता हूं , उस पर ईमान रखता हूं , उसी पर भरोसा करता हूं और यह गवाही देता हूं कि अल्लाह के सिवा कोई इबादत के लायक नहीं । वह अकेला है , उसका कोई शरीक नहीं । फिर आपने फ़रमाया , रहनुमा अपने घर के लोगों से झूठ नहीं बोल सकता । उस अल्लाह की क़सम , जिसके सिवा कोई माबूद नहीं , मैं तुम्हारी ओर मुख्य रूप से और लोगों की ओर सामान्य रूप से अल्लाह का रसूल ( भेजा हुआ ) हूं । अल्लाह की क़सम ! तुम लोग उसी तरह मौत से दोचार होगे , जैसे सो जाते हो और उसी तरह उठाए जाओगे , जैसे सो कर जागते हो , फिर जो कुछ तुम करते हो उसका तुमसे हिसाब लिया जाएगा । इसके बाद या तो हमेशा के लिए जन्नत है या हमेशा के लिए जहन्नम ।
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