इसलिए भाग्य ने आपको तंहाई के जिस जंगल में ला खड़ा किया था , अब्दुल मुत्तलिब इसमें आपको अकेले छोड़ने के लिए तैयार न थे . बल्कि आपको अपनी औलाद से भी बढ़कर चाहते और बड़ों की तरह उनका आदर करते थे । इब्ने हिशाम का बयान है कि अब्दुल मुत्तलिब के लिए खाना काबा के साए में फ़र्श बिछाया जाता , उनके सारे लड़के फर्श के चारों ओर बैठ जाते । अब्दुल मुत्तलिब तशरीफ़ लाते तो फर्श पर बैठते । उनके बड़कपन को देखते हुए उनका कोई लड़का फर्श पर न बैठता , लेकिन मोहम्मद तशरीफ़ लाते तो फ़र्श ही पर बैठ जाते ।
अभी आप कम उम्र बच्चे थे । आपके चचा लोग आपको पकड़कर उतार देते , लेकिन जब अब्दल - मुत्तलिब उन्हें ऐसा करते देखते , तो फ़रमाते , ' मेरे इस बेटे को छोड़ दो । ख़ुदा की कसम ! इसकी शान निराली है , फिर उन्हें अपने साथ अपने फर्श पर बिठा लेते थे , अपने हाथ से पीठ सहलाते और उनकी अदाएं देखकर खुश होते । आपकी उम्र अभी 8 साल दो महीने दस दिन की हुई थी कि दादा अब्दुल मत्तलिब इस दुनिया से सिधार गए ।
उनका देहान्त मक्का में हुआ और वह मृत्य से पहले अबू तालिब ( आपके चचा ) को - जो आपके बाप अब्दुल्लाह के सगे भाई थे , आपके लिए पालने - पोसने और देखभाल करने की वसीयत कर गए थे ।
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