इसके बाद फिर कभी मुझे इसका विचार न आया , यहां तक कि अल्लाह ने मुझे अपनी पैग़म्बरी भी दे दी । हआ यह कि जो लड़का ऊपरी मक्का में मेरे साथ बकरियां चराया करता था उससे एक रात मैंने कहा , क्यों न तम मेरी बकरियां देखो और मैं मक्का जाकर दूसरे जवानों की तरह वहां रात भर की किस्सा - कहानी की महफ़िल में शिर्कत कर लूं । उसने कहा ठीक है । इसके बाद मैं निकला और अभी मक्का के पहले ही घर के पास पहुंचा था कि बाजे की आवाज़ सुनाई पड़ी । मैने मालूम किया कि क्या है ? लोगों ने बताया , फ़्लां की फ़्लां से शादी है । मैं सनने बैठ गया और अल्लाह ने मेरा कान बन्द कर दिया और मैं सो गया । फिर सूरज की गर्मी ही से मेरी आंख खुली और मैं अपने साथी के पास वापस चला गया । उसके पूछने पर मैंने पूरा विवरण दे दिया । - इसके बाद एक रात फिर मैंने यही बात कही और मक्का पहुंचा तो फिर उसी रात की घटना घटी और उसके बाद फिर कभी ग़लत इरादा न हुआ ।
सहीह बुख़ारी में हज़रत जाबिर बिन अब्दुल्लाह से रिवायत है कि जब काबा बनाया गया तो मोहम्मद और हज़रत अब्बास रजि० पत्थर ढो रहे थे । हज़रत अब्बास रजि० ने मोहम्मद से कहा , अपना तहबंद अपने कंधे पर रख लो , पत्थर से हिफ़ाज़त रहेगी , लेकिन आप ज़मीन पर जा गिरे , निगाहें आसमान की ओर उठ गईं । संभलते ही आवाज़ लगाई , मेरा तहबंद , मेरा तहबंद ! और आपका तहबंद आपको बांध दिया गया ।
एक रिवायत के शब्द ये हैं कि इसके बाद आपकी शर्मगाह कभी नहीं देखी गई । मोहम्मद अपनी क़ौम में मीठे बोल , उच्च चरित्र और श्रेष्ठ आचरण की दृष्टि से विख्यात थे । इसलिए आप सबसे ज़्यादा नम्र हृदय , सबसे ज़्यादा सज्जन , सबसे अच्छे पड़ोसी , नेक कामों में सबसे आगे , अमल में सबसे नेक , वायदे के सबसे बढ़कर पाबंद और सबसे बड़े अमानतदार थे , यहां तक कि आपकी क़ौम ने आपका नाम ही ' अमीन ' रख दिया था , क्योंकि आप साक्षात भलाई थे और जैसा कि हज़रत ख्दीजा की गवाही है , ' आप कमज़ोरों का बोझ उठाते थे , ग़रीबों की मदद फरमाते थे , मेहमानों का सत्कार करते थे और ज़रूरतमंदों की ज़रूरत पूरी करते थे ।
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